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________________ १९० . . जीवाजीवाभिगम सूत्र हे भगवन्! क्या कालोद समुद्र के प्रदेश पुष्करवर द्वीप से छुए हुए हैं इत्यादि कथन पूर्वानुसार करना चाहिये यावत् पुष्करवरद्वीप के जीव मर कर कालोद समुद्र में कोई उत्पन्न होते हैं और कोई नहीं। विवेचन - कालोदधि समुद्र के चारों द्वारों की मोटाई १८ योजन को कालोदधि समुद्र की परिधि ९१७०६०५ योजन में से घटाने पर ९१७०५८७ योजन शेष रहते हैं। इनमें ४ का भाग देने पर एक द्वार से दूसरे द्वार का अंतर २२९२६४६ योजन और तीन कोस निकल आता है। सेकेणतुणं भंते! एवं वुच्चइ-कालोए समुद्दे कालोए समुद्दे ? गोयमा! कालोयस्स णं समुद्दस्स उदए आसले मासले पेसले कालए मासरासिवण्णाभे पगईए उदगरसेणं पण्णत्ते, कालमहाकाला एत्थ दुवे देवा महिड्डिया जाव पलिओवमट्ठिइया परिवसंति, से तेणटेणं गोयमा! जाव णिच्चे॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! कालोद (कालोदधि) समुद्र, कालोद समुद्र क्यों कहलाता है ? उत्तर - हे गौतम! कालोद समुद्र का पानी आस्वाद्य है, मांसल (भारी होने से) पेशल (मनोज्ञ स्वाद वाला) है, काला है, उड़द की राशि के वर्ण का है और स्वाभाविक उदक रस वाला है, इसलिये वह कालोद कहलाता है। वहां काल और महाकाल नाम के पल्योपम की स्थिति वाले महर्द्धिक दो देव रहते हैं। इसलिये वह कालोद कहलाता है। हे गौतम! दूसरी बात यह है कि कालोद समुद्र का नाम शाश्वत होने से वह नित्य है। कालोए णं भंते! समुद्दे कइ चंदा पभासिंसु वा ३? पुच्छा, गोयमा! कालोए णं समुद्दे बायालीसं चंदा पभासेंसु वा ३ बायालीसं चंदा बायालीसं च दिणयरा दित्ता॥ कालोदहिम्मि एए चरंति संबद्धलेसागा॥१॥ णक्खत्ताण सहस्सं एगं छावत्तरं च सयमण्णं। छच्च सया छण्णउया महागहा तिण्णि य सहस्सा ॥२॥ अट्ठावीसं कालोदहिम्मि बारस य. सयसहस्साइं। णव य सया पण्णासा तारागणकोडिकोडीणं॥३॥ सो.सु वा ३॥१७५॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! कालोद समुद्र में कितने चन्द्र उद्योत करते थे आदि प्रश्न? उत्तर - हे गौतम! कालोद समुद्र में बयालीस चन्द्र उद्योत करते थे, उद्योत करते हैं और उद्योत करेंगे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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