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________________ तृतीय प्रतिपत्ति - पुष्करवर द्वीप का वर्णन १९१ गाथाओं का अर्थ - कालोदधि में बयालीस चन्द्र और बयालीस सूर्य सम्बद्ध लेश्या वाले विचरण करते हैं। एक हजार एक सौ छिहत्तर (११७६) नक्षत्र, तीन हजार छह सौ छियानवै (३६९६) महाग्रह और अट्ठाईस लाख बारह हजार नौ सौ पचास (२८१२९५०) कोडाकोडी तारें शोभित होते. थे, शोभित होते हैं और शोभित होंगे। . पुष्करवर द्वीप का वर्णन कालोयं णं समुदं पुक्खरवरे णामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिए सव्वओ समंता संपरि० तहेव जाव समचक्कवालसंठाणसंठिए णो विसमचक्कवालसंठाणसंठिए। .... ...... ...... ..। पुक्खरवरे णं भंते! दीवे केवइयं चक्कवालविक्खंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते? गोयमा! सोलस,जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं-एगा जोयणकोडी बाणउइं खलु भवे सयसहस्सा। अउणाणउइं अट्ठ सया चउणउया य (परिरओ) पुक्खरवरस्स॥१॥ से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं० संपरि० दोण्हवि वण्णओ॥ भावार्थ - कालोदधि समुद्र को चारों ओर से घेर कर गोल और वलयाकार संस्थान से पुष्करवर द्वीप संस्थित है, उसी प्रकार कह देना चाहिये यावत् वह समचक्रवाल संस्थान से संस्थित है विषम चक्रवाल संस्थान से नहीं। .. प्रश्न - हे भगवन् ! पुष्करवर द्वीप का चक्रवाल विष्कंभ कितना है और उसकी परिधि कितनी है ? उत्तर - हे गौतम! पुष्करवर द्वीप सोलह लाख योजन का चक्रवाल विष्कम्भ वाला है। इसकी परिधि एक करोड़ बानवै लाख नव्यासी हजार आठ सौ चौरानवे (१,९२,८९,८९४) योजन है। वह एक पद्मवरवेदिका और एक वनखण्ड से चारों ओर से घिरा हुआ है। दोनों का वर्णन कह देना चाहिये। पुक्खरवरस्स णं भंते! दीवस्स कइ दारा पण्णत्ता? गोयमा! चत्तारि दारा पण्णत्ता, तंजहा - विजए वेजयंते जयंते अपराजिए॥... कहि णं भंते! पुक्खरवरस्स दीवस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते? गोयमा! पुक्खरवरदीवपुरच्छिमपेरंते पुक्खरोदसमुद्द-पुरच्छिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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