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तृतीय प्रतिपत्ति - लवण समुद्र के चन्द्र द्वीप सूर्य द्वीप
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जंबूद्वीप के सूर्यद्वीपों का वर्णन कहि णं भंते! जंबुद्दीवगाणं सूराणं सूरदीवाणामं दीवा पण्णत्ता?
गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं लवणसमुदं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता तं चेव उच्चत्तं आयामविक्खंभेणं परिक्खेवो वेइया वणसंडा भूमिभागा जाव आसयंति० पासायवडेंसगाणं तं चेव पमाणं मणिपेढिया सीहासणा सपरिवारा अट्ठो उप्पलाइं० सूरप्पभाई सूरा एत्थ देवा जाव रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पच्चत्थिमेणं अण्णंमि जंबुद्दीवे दीवे सेसं तं चेव जाव सूरा देवा २॥१६२॥
भावार्थ - हे भगवन् ! जंबूद्वीप के दो सूर्यों के दो सूर्य द्वीप कहां कहे गये हैं ? __ हे गौतम! जंबूद्वीप के मेरु पर्वत के पश्चिम में लवण समुद्र में बारह हजार योजन आगे जाने पर जंबूद्वीप के दो सूर्यों के दो सूर्य द्वीप हैं। उनका उच्चत्व, आयाम-विष्कंभ, परिधि, वेदिका, वनखंड भूमिभाग, वहां देव देवियों का उठना, बैठना, प्रासादावतंसक, उनका प्रमाण, मणिपीठिका, सपरिवार सिंहासन आदि का वर्णन चन्द्रद्वीप की तरह समझना चाहिये।
हे भगवन् ! सूर्य द्वीप, सूर्य द्वीप क्यों कहलाते हैं ? . हे गौतम! उन द्वीपों की बावड़ियों आदि में सूर्य के समान आकृति और वर्ण वाले बहुत सारे उत्पल आदि कमल हैं इसलिये वे सूर्यद्वीप कहलाते हैं। ये सूर्यद्वीप शाश्वत नाम वाले नित्य हैं। इनमें सूर्यदेव, सामानिक देव आदि का एवं ज्योतिषी देव देवियों का आधिपत्य करते हुए विचरते हैं यावत् इनकी राजधानियां अपने अपने द्वीपों से पश्चिम में असंख्यात द्वीप समुद्रों को पार करने पर अन्य जंबूद्वीपों में बारह हजार योजन आगे जाने पर आती हैं। उनका प्रमाण आदि चन्द्रादि राजधानियों के समान समझना चाहिये यावत् वहां सूर्य नामक महर्द्धिक देव हैं। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में जंबूद्वीपगत चन्द्र द्वीपों और सूर्य द्वीपों का वर्णन किया गया है।
लवण समुद्र के चंद्रद्वीप सूर्य द्वीप कहि णं भंते! अब्भिंतरलावणगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमेणं लवणसमुहं बारस जोयणसहस्साई
ओगाहित्ता एत्थ णं अब्भिंतरलावणगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता, जहा जंबुद्दीवगा चंदा तहा भाणियव्वा णवरि रायहाणीओ अण्णंमि लवणे सेसं तं चेव। एवं अब्भिंतरलावणगाणं सूराणवि लवणसमुदं बारस जोयणसहस्साइं तहेव सव्वं जाव रायहाणीओ॥
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