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________________ १५४ जीवाजीवाभिगम सूत्र .0000000000000000000000...•••••••••••••••••••••••••••••••••••••• हे भगवन्! इन चार वेलंधर नागराजों के कितने आवास पर्वत कहे गये हैं? हे गौतम! इन चार वेलंधर नागराजों के चार आवास पर्वत कहे गये हैं। यथा - गोस्तप. उदकभास, शंख और दकसीम। कहि णं भंते! गोथूभस्स वेलंधरणागरायस्स गोथूभे णामं आवासपव्वए पण्णत्ते? गोयमा! जंबूदीवे दीवे मंदरस्स प० पुरत्थिमेणं लवणं समुदं बायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता एत्थ णं गोथूभस्स वेलंधरणागरायस्स गोथूभे णामं आवासपव्वए पण्णत्ते सत्तरसए एक्कवीसाइं जोयणसयाइं उठें उच्चत्तेणं चत्तारि तीसे जोयणसए कोसं च उव्वेहेणं मूले दसबावीसे जोयणसए आयामविक़्खंभेणं मज्झे सत्ततेवीसे जोयणसए उवरिं चत्तारि चउवीसे जोयणसए आयामविक्खंभेणं मूले तिण्णि जोयणसहस्साइं दोण्णि य बत्तीसुत्तरे जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं मझे दो जोयणसहस्साइं दोण्णि य छलसीए जोयणसए किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं उवरि एगं जोयणसहस्सं तिण्णि य ईयाले जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं मले वित्थिपणे मज्झे संखित्ते उप्पिं तणुए गोपुच्छसंठाणसंठिए सव्वकणगामए अच्छे जाव पडिरूवे॥ से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते, . दोण्हवि वण्णओ॥ भावार्थ - हे भगवन् ! गोस्तूप वेलंधर नागराज का गोस्तूप आवास पर्वत कहां कहा गया है? हे गौतम! जंबूद्वीप नामक द्वीप के मेरु पर्वत के पूर्व में लवण समुद्र में बयालीस हजार योजन आगे जाने पर गोस्तूप वेलंधर नागराज का गोस्तूप नाम का आवास पर्वत है। वह सतरह सौ इक्कीस (१७२१) योजन ऊंचा, चार सौ तीस योजन एक कोस पानी में गहरा, मूल में दस सौ बाईस १०२२) योजन लंबा चौड़ा बीच में सात सौ तेईस (७२३) योजन लंबा चौड़ा और ऊपर चार सौ चौबीस '(४२४) योजन लंबा चौड़ा है। उसकी परिधि मूल में तीन हजार दो सौ बत्तीस (३२३२) योजन से कुछ कम, मध्य में बाईस सौ चौरासी (२२८४) योजन से कुछ अधिक और ऊपर तेरह सौ इकतालीस (१३४१) योजन से कुछ कम है। यह मूल में विस्तीर्ण मध्य में संक्षिप्त और ऊपर पतला है, गोपुच्छ आकार से संस्थित है। सर्व कनकमय, स्वच्छ यावत् प्रतिरूप है। वह एक पद्मवरवेदिका और एक वनखंड से चारों ओर से घिरा हुआ है। दोनों का वर्णन कह देना चाहिये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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