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तृतीय प्रतिपत्ति - वेलंधर नागराज का वर्णन
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गोथूभस्स णं आवासपव्वयस्स उवरि बहुसमरमणिजे भूमिभागे पण्णत्ते जाव आसयंति०॥ तस्स णं बहुसमरमणिजस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं एगे महं पासायवडेंसए बावटुं जोयणद्धं च उडूं उच्चत्तेणं तं चेव पमाणं अद्धं आयामविक्खंभेणं वण्णओ जाव सीहासणं सपरिवारं॥
से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ-गोथूभे आवासपव्वए गोथूभे आवासपव्वए?
गोयमा! गोथूभे णं आवासपव्वए तत्थ तत्थ देसे देसे तहिं तहिं बहूओ खड्डाखुड्डियाओ जाव गोथूभवण्णाई बहूइं उप्पलाइं तहेव जाव गोथूभे तत्थ देवे महिड्डिए जाव पलिओवमट्ठिइए परिवसइ, से णं तत्थ चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव गोथूभयस्स आवासपव्वयस्स गोथूभाए रायहाणीए जाव विहरइ, से तेणटेणं जाव णिच्चे॥
रायहाणि पुच्छा, गोयमा! गोथूभस्स आवासपव्वयस्स पुरथिमेणं तिरियमसंखेजे दीवसमुद्दे वीइवइत्ता अण्णंमि लवणसमुद्दे तं चेव पमाणं तहेव सव्वं॥ ' भावार्थ - गोस्तूप आवास पर्वत के ऊपर बहुसमरमणीय भूमिभाग कहा गया है आदि सारा वर्णन पूर्वानुसार समझ लेना चाहिये यावत् वहां बहुत से नागकुमार देव और देवियां स्थित होती हैं। उस बहुसमरमणीय भूमिभाग के बहुमध्य देशभाग में एक बड़ा प्रासादावतंसक है जो साढे बासठ योजन ऊंचा है सवा इकतीस योजन लंबा-चौड़ा है. आदि वर्णन विजयदेव के प्रासादावतंसक के समान समझना चाहिये यावत् सपरिवार सिंहासन का कथन कर देना चाहिये।
हे भगवन्! गोस्तूप आवास पर्वत, गोस्तूप आवास पर्वत क्यों कहा जाता है ? - हे गौतम! गोस्तूप आवास पर्वत पर बहुत सी छोटी छोटी बावड़ियां आदि हैं, जिनमें गोस्तूप वर्ण के बहुत सारे उत्पल कमल आदि हैं यावत् वहां गोस्तूप नामक महर्द्धिक और एक पल्योपम की स्थिति वाला देव रहता है। वह गोस्तूप देव चार हजार सामानिक देवों यावत्. गोस्तूप आवास पर्वत और गोस्तूपा राजधानी का आधिपत्य करता हुआ विचरता है। इस कारण वह गोस्तूप आवास पर्वत कहा जाता है यावत् वह गोस्तूप आवास पर्वत द्रव्य से नित्य है। .. हे भगवन्! गोस्तूप देव की गोस्तूपा राजधानी कहां है?
हे गौतम ! गोस्तूप आवास पर्वत के पूर्व में तिरछी दिशा में असंख्यात द्वीप समुद्र पार करने के बाद अन्य लवण समुद्र में गोस्तूपा राजधानी है। उसका प्रमाण आदि वर्णन बिजया राजधानी की तरह कह देना चाहिये।
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