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________________ जीवाजीवाभिगम सूत्र बावत्तरं णागसाहस्सीओ बाहिरियं वेलं धारेंति, सट्ठि नागसाहस्सीओ अग्गोदयं धारेंति, एवामेव सपुव्वावरेणं एगा णागसयसाहस्सी चोवत्तरिं च णागसहस्सा भवंतीत मक्खाया ॥ १५८ ॥ कठिन शब्दार्थ - लवणसिंहा- लवण समुद्र की शिखा, अब्धिंतरियं - आभ्यंतर, वेलं - वेला को, धारेंति धारण करते हैं, अग्गोदयं अग्रोदक देशोन अर्द्ध योजन से ऊपर बढ़ने वाले जल को । भावार्थ - हे भगवन् ! लवण समुद्र की शिखा चक्रवाल विष्कम्भ से कितनी चौड़ी है और वह कितनी बढ़ती है और घटती है ? १५२ - हे गौतम! लवण समुद्र की शिखा चक्रवाल विष्कम्भ की अपेक्षा दस हजार योजन चौड़ी है और कुछ कम आधे योजन तक वह बढ़ती है और घटती है। - हे भगवन्! लवण समुद्र की आभ्यंतर वेला (जंबूद्वीप की ओर बढ़ती हुई शिखा ) को कितने हजार नागकुमार देव धारण करते हैं ? बाह्य वेला ( धातकीखंड की ओर अभिमुख होकर बढ़ने वाली शिखा) को कितने हजार नागकुमार देव धारण करते हैं ? कितने हजार नागकुमार देव अग्रोदक को धारण करते हैं ? हे गौतम! लवण समुद्र की आभ्यंतर वेला को बयालीस हजार (४२०००) देव धारण करते हैं, बाह्य वेला को बहत्तर हजार (७२०००) देव धारण करते हैं । अग्रोदक को साठ हजार (६००००) देव धारण करते हैं। इस प्रकार सब मिला कर इन नागकुमार देवों की संख्या एक लाख चौहत्तर हजार (१,७४,०००) कही गई है। विवेचन - लवण समुद्र की शिखा सब ओर से दस हजार योजन, चक्रवाल विस्तार वाली है। वह शिखा कुछ कम दो कोस प्रमाण अतिशय से बढ़ती है और उतनी ही घटती है। इसके स्पष्टीकरण के लिये निम्न संग्रहणी गाथाएं टीका में दी गई हैं. - पंचाणउय सहस्से गोतित्थं उभयओ वि लवणस्स । जोयणसयाणि सत्त उदग परिवुड्डी वि उभयो वि ॥ १ ॥ दस जोयणसहस्सा लवणसिहा चक्कवालओ रुंदा । सोलससहस्स उच्चा सहस्समेगं च ओगाढा ॥ २ ॥ देसूणमद्धजोयण लवण सिहोवरि दुगं दुवे कालो । - अगं अगं परिवुड्ढइ हायए वावि ॥ ३ ॥ लवण समुद्र में जंबूद्वीप से और धातकीखंड द्वीप से ९५ - ९५ हजार योजन तक गोतीर्थ (तडाग आदि में प्रवेश करने का क्रमशः नीचे नीचे का भूप्रदेश) है। मध्यभाग का अवगाह दस हजार योजन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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