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________________ तृतीय प्रतिपत्ति - लवणशिखा का वर्णन १५१ वायुकाय का अभाव होता है तब भाटा (जलहानि) होता है। इस तरह लवण समुद्र में प्रतिनियतकाल में ज्वार भाटा का क्रम चलता रहता है। लवणे णं भंते! समुद्दे तीसाए मुहुत्ताणं कइखुत्तो अइरेगं अइरेगं वड्डइ वा हायइ वा? गोयमा! लवणे णं समुद्दे तीसाए मुहुत्ताणं दुक्खुत्तो अइरेगं अइरेगं वड्डइ वा हायइ वा॥ से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ-लवणे णं समुद्दे तीसाए मुहुत्ताणं दुक्खुत्तो अइरेगं अइरेगं वड्डइ वा हायइ वा? गोयमा! उड्डमंतेसु पायालेसु वड्डइ आपूरिएसु पायालेसु हायइ, से तेणद्वेणं गोयमा! लवणे णं समुद्दे तीसाए मुहुत्ताणं दुक्खुत्तो अइरेगं अइरेगं वड्डइ वा हायइ वा॥१५७॥ भावार्थ - हे भगवन् ! लवण समुद्र का जल तीस मुहूर्तों में कितनी बार विशेष रूप से बढ़ता है या घटता है? - हे गौतम! लवण समुद्र का जल तीस मुहूर्तों (एक अहोरात्र) में दो बार विशेष रूप से बढ़ता है और घटता है। हे भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि लवण समुद्र का जल तीस मुहूर्तों में दो बार विशेष रूप से बढ़ता है और घटता है ? हे गौतम! निचले और मध्य के त्रिभागों में जब वायु के संक्षोभ से पाताल कलशों में से पानी ऊंचा उछलता है तब समुद्र में पानी बढ़ता है और जब वे पाताल कलश वायु के स्थिर होने से जल से आपूरित बने रहते हैं तब पानी घटता है। इस कारण हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि लवण समुद्र का पानी तीस मुहूर्तों में दो बार बढ़ता है और घटता है। विवेचन - तथाविध जगत् स्वभाव होने से एक अहोरात्र (तीस मुहूर्तों) में दो बार लवण समुद्र का पानी ऊंचा उछलता (बढ़ता) है और घटता है। लवणशिखा का वर्णन लवणसिहा णं भंते! केवइयं चक्कवालविक्खंभेणं केवइयं अइरेगं अइरेगं वड्डइ वा हायइ वा? गोयमा! लवणसिहाए णं दस जोयणसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं देसूणं अद्धजोयणं अइरेगं अइरेगं वड्डइ वा हायइ वा॥ . लवणस्स णं भंते! समुद्दस्स कइ णागसाहस्सीओ अभिंतरियं वेलं धारंति? कइ णागसाहस्सीओ बाहिरियं वेलं धरंति? कइ णागसाहस्सीओ अग्गोदयं धरेंति? गोयमा! लवणसमुदस्स बायालीसं णागसाहस्सीओ अब्भिंतरियं वेलं धारेंति, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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