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जीवाजीवाभिगम सूत्र woooooooooooooooooooooooooooooooorrearrrrrrrrrrrrrrrrrrrr.. भावं ण परिणमंति तया णं से उदए णो उपणामिज्जइ अंतरावि य णं ते वायं उदीरेंति अंतरावि य णं से उदंगे उण्णामिज्जइ अंतरावि य ते वाया णो उदीरंति अंतरावि य णं से उदगे णो उण्णामिजइ, एवं खलु गोयमा! लवणसमुद्दे चाउद्दसट्ठमुट्ठिपुण्णमासिणीसु अइरेगं अइरेगं वड्डइ वा हायइ वा॥१५६॥
कठिन शब्दार्थ - ओराला वाया - उदार-ऊर्ध्वगमन स्वभाव वाले अथवा प्रबल शक्ति वाले वायुकाय, संसेयंति - उत्पन्न होने के अभिमुख होते हैं, संमुच्छिमंति - संमूर्च्छिन्ति-संमूर्च्छन जन्म से आत्म लाभ करते हैं, एयंति - कंपित होते हैं-चलते हैं, खुब्भंति - क्षोभित होते हैं, फंदंति - उछलते हैं, उण्णामिज्जइ - उछाला जाता है।
भावार्थ - उन छोटे पाताल कलशों के तीन त्रिभाग कहे गये हैं यथा - नीचला त्रिभाग २. मध्य का त्रिभाग और ३. ऊपर का त्रिभाग। ये त्रिभाग तीन सौ तेतीस योजन और योजन का त्रिभाग (३३३१) प्रमाण मोटे हैं। इनमें से नीचले त्रिभाग में वायुकाय है मध्य के त्रिभाग में वायुकाय और अप्काय है और ऊपर के त्रिभाग में अप्काय है। इस प्रकार पूर्वापर सब मिलाकर लवण समुद्र में सात हजार आठ सौ चौरासी (७८८४) पाताल कलश कहे गये हैं।
___ उन महापाताल कलशों और छोटे पाताल कलशों के नीचले और मध्य के विभागों में बहुत से ऊर्ध्वगमन स्वभाव वाले अथवा प्रबल शक्ति वाले वायुकाय उत्पन्न होने के अभिमुख होते हैं, संमूर्च्छन जन्म से आत्म लाभ करते हैं, कंपित होते हैं, विशेष रूप से कंपित होते हैं, चलते हैं, परस्पर घर्षित होते हैं, शक्तिशाली होकर इधर उधर और ऊपर फैलते हैं, इस प्रकार वे भिन्न-भिन्न भाव में परिणत होते हैं तब वह समुद्र का पानी उनसे क्षुभित होकर ऊपर उछाला जाता है। जब उन महापाताल कलशों
और छोटे पाताल कलशों के नीचे के और मध्य के त्रिभागों में बहुत से प्रबल शक्ति वाले वायुकाय उत्पन्न नहीं होते यावत् उस-उस भाव में परिणत नहीं होते तब वह पानी नहीं उछलता है। प्रतिनियतकाल में-अहोरात्र में दो बार और पक्ष में चतुर्दशी आदि तिथियों में तथाविध जगत् स्वभाव से लवण समुद्र का पानी उन वायुकाय से प्रेरित होकर विशेष रूप से उछलता है। प्रतिनियत काल को छोड़कर अन्य समय में नहीं उछलता है। इसलिये हे गौतम! लवण समुद्र का जल चतुर्दशी, अष्टमी, पूर्णिमा और अमावस्या को विशेष रूप से बढ़ता है और घटता है।
विवेचन - लवण समुद्र में कुल सात हजार आठ सौ चौरासी पाताल कलश कहे गये हैं। प्रस्तुत सूत्र में इन पाताल कलशों का वर्णन करते हुए चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णिमा को लवण समुद्र में आने वाले ज्वार और भाटा का कारण बताया गया है। जब पाताल कलशों के नीचले और मध्यम त्रिभागों में उन्नामक वायुकाय का सद्भाव होता तब ज्वार (जल वृद्धि) और जब उन्नामक
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