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तृतीय प्रतिपत्ति - जम्बूद्वीप, जम्बूद्वीप क्यों कहलाता है ? .00000000000000000000000000000................................. पडीणायया दुहओ वक्खारपव्वयं पुट्ठा, पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं वक्खारपव्वयं पुट्ठा, पच्चथिमिल्लाए कोडीए पच्चथिमिल्लं वक्खारपव्वयं पुट्ठा, तेवण्णं जोयणसहस्साइं आयामेणं, तीसे धणुपटुं दाहिणेणं सद्धिं जोयणसहस्साइं चत्तारि य अट्ठारसुत्तरे जोयणसए दुवालस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं पण्णत्ते॥
भावार्थ - हे भगवन् ! जंबूद्वीप, जंबूद्वीप क्यों कहलाता है ? __ हे गौतम! जंबूद्वीप के मेरु पर्वत के उत्तर में, नीलवंत पर्वत के दक्षिण में, मालवंत वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में एवं गंधमादन वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में उत्तरकुरा नामक कुरा-क्षेत्र है। वह पूर्व से पश्चिम तक लम्बा और उत्तर से दक्षिण तक चौड़ा है, अर्द्धचन्द्र की तरह गोलाकार है। इसका विष्कम्भ-चौड़ाई ग्यारह हजार आठ सौ बयालीस (११८४२) योजन और एक योजन का भाग है। इसकी जीवा (प्रत्यंचा) पूर्व-पश्चिम तक लम्बी है और दोनों वक्षस्कार पर्वतों को छूती है। पूर्व दिशा के छोर से पूर्व दिशा के वक्षस्कार पर्वत और पश्चिम दिशा के छोर से पश्चिम दिशा के वक्षस्कार पर्वत को छूती है। यह जीवा तिरपन हजार योजन लम्बी है। इस उत्तरकुरा का धनुपृष्ठ दक्षिण दिशा में साठ हजार चार सौ अठारह योजन और योजन है। यह धनुपृष्ठ परिधि रूप है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में उत्तरकुरु क्षेत्र का विस्तार, जीवा का प्रमाण और धनुपृष्ठ का प्रमाण बताया गया है जो इस तरह समझना चाहिये - .. महाविदेह क्षेत्र में मेरु के उत्तर की ओर उत्तरकुरु और दक्षिण की ओर दक्षिणकुरु क्षेत्र है। उत्तरकुरु क्षेत्र. पूर्व से पश्चिम तक लम्बा और उत्तर से दक्षिण तक फैला हुआ है। इसका संस्थान अष्टमी के चन्द्रमा जैसा अर्द्ध गोलाकार है। महाविदेह क्षेत्र का विस्तार ३३६८४ २. योजन है। इसमें मेरु पर्वत का विस्तार १०,००० योजन घटाने पर २३६८४२० योजन रहते हैं। इसके दो विभाग करने पर ११८४२ २. योजन होता है यही उत्तरकुरु और दक्षिणकुरु का विस्तार है। इसकी जीवा उत्तर में नील वर्षधर पर्वत के समीप तक विस्तृत और पूर्व पश्चिम तक लम्बी है। यह अपने पूर्व दिशा के छोर से माल्यवंत वक्षस्कार पर्वत को छूती है और पश्चिम दिशा के छोर से गंधमादन वक्षस्कार पर्वत को छूती है। यह जीवा ५३००० योजन लम्बी है। जो इस प्रकार समझनी चाहिये - . ____मेरु पर्वत की पूर्व दिशा और पश्चिम दिशा के भद्रशाल वनों की प्रत्येक की लम्बाई २२०००
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