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________________ ११२ जीवाजीवाभिगम सूत्र .00000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000+ २ त्ता धूवं दलयइ २ त्ता वइरामएसु गोलवट्टसमुग्गए पडिणिक्खिवइ २ त्ता माणवकं चेइयखंभं लोमहत्थएणं पमजइ २ दिव्वाए उदगधाराए अब्भुक्खेइ २ त्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ २ पुण्फारुहणं जाव आसत्तोसत्त० कयग्गाह० धूवं दलयइ २ जेणेव सभाए सुहम्माए बहुमझदेसभाए तं चेव जेणेव सीहासणे तेणेव जहा दारच्चणिया जेणेव देवसयणिजे तं चेव जेणेव खुड्डागे महिंदज्झए तं चेव जेणेव पहरणकोसे चोप्याले तेणेव उवागच्छइ २ पत्तेयं पत्तेयं पहरणाई लोमहत्थएणं पमज्जइ पमजित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं तहेव सव्वं सेसं पि दक्खिणदारं आदिकाउं तहेव णेयव्वं जाव पुरच्छिमिल्ला णंदापुक्खरिणी सव्वाणं सभाणं जहा सुहम्माए सभाए तहा अच्चणिया उववायसभाए णवरि देवसयणिजस्स अच्चणिया सेसासु सीहासणाण अच्चणिया हरयस्स जहा णंदाए पुक्खरिणीए अच्चणिया, ववसायसभाए पोत्थयरयणं लोम० दिव्वाए उदगधाराए सरसेणं गोसीसचंदणेणं अणुलिंपइ अग्गेहिं वरेहिं गंधेहिं य मल्लेहि य अच्चिणइ २ त्ता (मल्लेहि) सीहासणे लोमहत्थएणं पमजइ जावं धूवं दलयइ सेसं तं चेव णंदाए जहा हरयस्स तहा जेणेव बलिपीढं तेणेव उवागच्छइ २ त्ता आभिओगे देवे सद्दावेइ २ त्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! विजयाए रायहाणीए सिंघाडएसु य तिएसु य चउक्केसु य चच्चरेसु य चउमुहेसु य महापहपहेसु य पासाएसु य पागारेसु य अट्टालएसु य चरियासु य दारेसु य गोपुरेसु य तोरणेसु य वावीसु य पुक्खरिणीसु य जाव बिलपंतियासु य आरामेसु य उज्जाणेसु य काणणेसु य वणेसु य वणसंडेसु य वणराईसु य अच्चणियं करेह करेत्ता ममेयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणह। तए णं ते आभिओगिया देवा विजएणं देवेणं एवं वुत्ता समाणा जाव हट्टतुट्ठा विणएणं पडिसुणेति २ त्ता विजयाए रायहाणीए सिंघाडएसु य जाव अच्चणियं करेत्ता जेणेव विजए देवे तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणंति॥ कठिन शब्दार्थ - गोलवट्टसमुग्गए - गोल-वर्तुलाकार मंजूषाएं (समुद्गक), विहाडेइ - खोलता है, पहरणकोसे - प्रहरण कोष (शस्त्रागार), सिंघाडएसु - शृंगाटकों-त्रिकोण स्थानों में, तिएसुत्रिकों में-जहाँ तीन रास्ते मिलते हैं, चउक्केसु - चतुष्कों में-जहाँ चार रास्ते मिलते हैं, चच्चरेसु - चत्वरों में-जहाँ बहुत से रास्ते मिलते हैं, चउमुहेसु - चतुर्मुखों में-जहाँ से चारों दिशाओं में रास्ते जाते हैं, चरियासु - चर्याओं-नगर और प्राकार के बीच आठ हाथ प्रमाण चौड़े अन्तराल मार्ग-में, गोपुरेसु - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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