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________________ तृतीय प्रतिपत्ति - विजयदेव का उपपात और उसका अभिषेक भावार्थ - चैत्य स्तुप पर आकर लोमहस्तक ग्रहण करता है, लोमहस्तक से चैत्यस्तूप का प्रमार्जन, उदकधारा से सिंचन, सरस चंदन से लेप, पुष्प चढाना, मालाएं रखना, धूप देना आदि विधि करता है। फिर पश्चिम की मणिपीठिका और जिन प्रतिमा है वहाँ जाकर जिन प्रतिमा को देखते ही नमस्कार करता है, लोमहस्तक से प्रमार्जन करता है आदि कथन यावत् सिद्धिगति नामक स्थान को प्राप्त अरिहंत भगवंतों को वंदन करता है नमस्कार करता है। इसी प्रकार उत्तर की, पूर्व की और दक्षिण की मणिपीठिका और जिनप्रतिमाओं के विषय में कह देना चाहिए। फिर जहाँ दक्षिण दिशा का चैत्यवृक्ष है वहाँ जाता है वहाँ पूर्ववत् अर्चना करता है, वहाँ से महेन्द्र ध्वज के पास आकर पूर्ववत् अर्चना करता है। वहाँ से दक्षिण दिशा की नंदा पुष्करिणी के पास आता है, लोमहस्तक लेता है और चैत्यों. त्रिसोपानप्रतिरूपक. तोरण, शालभंजिकाओं और व्यालरूपकों का प्रमार्जन करता है. दिव्य उदक धारा से सिंचन करता है, सरस गोशीर्ष चंदन से लेप करता है, फूल चढाता है यावत् धूप देता है। तदनन्तर सिद्धायतन की प्रदक्षिणा करता हुआ जिधर उत्तरदिशा की नंदापुष्करिणी है उधर जाता है। उसी तरह महेन्द्रध्वज, चैत्यवृक्ष, चैत्य स्तूप, पश्चिम की मणिपीठिका और जिन प्रतिमा, उत्तर, पूर्व और दक्षिण की मणिपीठिका और जिन प्रतिमाओं का कथन करना चाहिये। तत्पश्चात् उत्तर के प्रेक्षाघर मण्डप में आता है. वहाँ दक्षिण के प्रेक्षागह मण्डप की तरह सारा कथन कह देना चाहिए। वहाँ से उत्तरद्वार से निकल कर उत्तरदिशा के मुखमण्डप में आता है। वहाँ दक्षिण के मुख मण्डप की तरह संपूर्ण विधि करके उत्तरद्वार से निकल कर सिद्धायतन के पूर्वद्वार पर. आता है। वहाँ पूर्ववत् अर्चना करके पूर्व के मुखमण्डप के दक्षिण, उत्तर और पूर्वदिशा के द्वारों में क्रमशः पूर्वानुसार पूजा करके पूर्व द्वार से निकल कर पूर्व प्रेक्षागृह मंडप में आकर पूर्ववत् अर्चना करता है। फिर पूर्वोक्त रीति से क्रमशः चैत्यस्तूप, जिन प्रतिमा, चैत्यवृक्ष, महेन्द्र ध्वज और नंदापुष्करिणी की पूजा-अर्चना करता है। वहाँ से सुधर्मा सभा की ओर.आने की इच्छा करता है। तए णं तस्स विजयस्स चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ एयप्पभिई जाव सव्विड्डिए जाव णाइयरवेणं जेणेव सभा सुहम्मा तेणेव उवागच्छंति २ त्ता तं णं सभं सुहम्म अणुप्पयाहिणी करेमाणे २ पुरथिमिल्लेणं अणुपविसइ २ त्ता आलोए जिणसकहाणं पणामं करेइ २ जेणेव मणिपेढियां जेणेव माणवयचेइयक्खंभे जेणेव वइरामया गोलवट्टसमुग्गका तेणेव उवागच्छइ २ लोमहत्थयं गेण्हइ २ त्ता वइरामए गोलवट्टसमुग्गए लोमहत्थएण पमज्जइ २ त्ता वइरामए गोलवट्टसमुग्गए विहाडेइ २ त्ता जिणसकहाओ लोमहत्थएणं पमजइ २ त्ता सुरभिणा गंधोदएणं तिसत्तखुत्तो जिणसकहाओ पक्खालेइ २ सरसेणं गोसीसचंदणेणं अणुलिंपइ २ त्ता अग्गेहिं वरेहिं गंधेहिं मल्लेहि य अच्चिणइ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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