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________________ ११० जीवाजीवाभिगम सूत्र कचग्राह गृहीत करतल विमुक्त पांच वर्गों के फूलों से पुष्पोपचार करता है, धूप देता है। फिर मुखमंडप की उत्तर दिशा की स्तंभ पंक्ति की ओर जाता है लोमहस्तक से शालभंजिकाओं का प्रमार्जन करता है, दिव्यजलधारा से सिंचन करता है, सरस गोशीर्ष चंदन का लेप करता है फूल चढाता है यावत् बडी. बडी मालाएं रखता है, कचग्राहग्रहीत करतल विमुक्त होकर बिखरे हुए फूलों से पुष्पोपचार करता है, धूप देता है। फिर मुखमंडप के पूर्व के द्वार की ओर जाता है और वह सब कथन पूर्ववत् कह देना चाहिए यावत् द्वार की अर्चना करता है। इसी तरह दक्षिण दिशा के द्वार में भी वैसा ही कथन कर देना चाहिए। फिर प्रेक्षा घर मण्डप के बहुमध्यभाग में जहाँ वज्रमय अखाड़ा है जहां मणिपीठिका है. जहाँ सिंहासन है वहा आता है लोमहस्तक से अखाड़ा मणिपीठिका और सिंहासन का प्रमार्जन करता है, उदकधारा से सिंचन करता है फूल चढाता है यावत् धूप देता है। फिर प्रेक्षाघर मण्डप के पश्चिम के द्वार में द्वार पूजा उत्तर की खंभपंक्ति में वैसा ही कथन पूर्व के द्वार में वैसा ही कथन और दक्षिण के द्वार में भी वही कथन कर देना चाहिए। फिर जहाँ चैत्य स्तुप है वहां आता है। उवागच्छित्ता लोमहत्थगं गेण्हइ २ त्ता चेइयथूभं लोमहत्थएणं पमजइ पमज्जित्ता दिव्वाए दग० सरसेण० पुप्फारुहणं आसत्तोसत्त जाव धूवं दलयइ २त्ता जेणेव पच्चत्थिमिल्ला मणिपेढिया जेणेव जिणपडिमा तेणेव उवागच्छइ जिणपडिमाए आलोए पणामं करेइ २ त्ता लोमहत्थगं गेण्हइ २ त्ता तं चेव सव्वं जं जिणपडिमाणं जाव सिद्धिगइणामधेनं ठाणं संपत्ताणं वंदइ णमंसइ, एवं उत्तरिल्लाएवि, एवं पुरथिमिल्लाएवि, एवं दाहिणिल्लाएवि, जेणेव चेइयरुक्खा दारविही य मणिपेढिया जेणेव महिंदज्झए दारविही, जेणेव दाहिणिल्ला णंदापुक्खरिणी तेणेव उवा० लोमहत्थगं गेण्हइ चेइयाओ य तिसोवाणपडिरूवए य तोरणे य सालभंजियाओ य वालरुवए य लोमहत्थएण य पमजइ २ त्ता दिव्वाए उदगधाराए सिंचइ सरसेणं गोसीसचंदणेणं अणुलिंपइ २ त्ता पुष्फारुहणं जाव धूवं दलयइ २ त्ता सिद्धायतणं अणुप्पयाहिणं करेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला गंदापुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ २ त्ता तहेव महिंदज्झया चेइयरुक्खो चेइयथूभे पच्चथिमिल्ला मणिपेढिया जिणपडिमा उत्तरिल्ला पुरथिमिल्ला दक्खिणिल्ला पेच्छाघरमंडवस्सवि तहेव जहा दक्खिणिल्लस्स पच्चथिमिल्ले दारे जाव दक्खिणिल्ला णं खंभपंती मुहमंडवस्सवि तिण्हं दाराणं अच्चणिया भणिऊणं दक्खिणिल्ला णं खंभपंती उत्तरे दारे पुरच्छिमे दारे सेसं तेणेव कमेण जाव पुरथिमिल्ला णंदापुक्खरिणी जेणेव सभा सुहम्मा तेणेव पहारेत्थ गमणाए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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