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________________ तृतीय प्रतिपत्ति - विजयदेव का उपपात और उसका अभिषेक १०९ वालरुवए य लोमहत्थएणं पमज्जइ २ दिव्वाए उदगधाराए अब्भुक्खेइ २ सरसेणं गोसीसचंदणेणं जाव चच्चए दलयइ २ आसत्तोसत्त० कयग्गाह० धूवं दलयइ २ जेणेव मुहमंडवगस्स उत्तरिल्ला णं खंभपंती तेणेव उवागच्छइ २ लोमहत्थगं परामुसइ सालभंजियाओ दिव्वाए उदगधाराए सरसेणं गोसीसचंदणेणं पुप्फारुहणं जाव आसत्तोसत्त० कयग्गाह० धूवं दलयइ जेणेव मुहमंडवस्स पुरथिमिल्ले दारे तं चेव सव्वं भाणियव्वं जाव दारस्स अच्चणिया जेणेव दाहिणिल्ले दारे तं चेव पेच्छाघरमंडवस्स बहुमझदेसभाए जेणेव वइरामए अक्खाडए जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ २ लोमहत्थगं गिण्हइ लोमहत्थगं गिण्हित्ता अक्खाडगं च सीहासणं च लोमहत्थएणं पमज्जइ २ त्ता दिव्वाए उदगधाराए अब्भु० पुण्फारुहणं जाव धूवं दलयइ जेणेव पेच्छाघरमंडवपच्चत्थिमिल्ले दारे दारच्चणिया उत्तरिल्ला खंभपंती तहेव पुरथिमिल्ले दारे तहेव जेणेव दाहिणिल्ले दारे तहेव जेणेव चेइयथभे तेणेव उवागच्छइ। भावार्थ - वंदन नमस्कार करके जहाँ सिद्धायतन का मध्यभाग है वहाँ आता है और दिव्य जल की धारा से उसका सिंचन करता है, सरस गोशीर्ष चंदन से हाथों को लिप्त कर पांचों अंगुलियों से मंडल बनाता है, उसकी अर्चना करता है और कचग्राह गृहीत और करतल से विमुक्त होकर बिखरे हुए पांच वर्गों के फूलों से उसको पुष्पोपचार युक्त करता है और धूप देता है। धूप देकर जिधर सिद्धायतन का दक्षिण दिशा का द्वार है उधर जाता है। वहाँ जाकर लोमहस्तक लेकर द्वार शाखा, शालभंजिका तथा व्यालरूंपक का प्रमार्जन करता है, उसके मध्यभाग को सरस गोशीर्ष चंदन से लिप्त हाथों से लेप लगाता है, अर्चना करता है, फूल चढाता है यावत् आभरण चढाता है ऊपर से लेकर जमीन तक लटकती बड़ी बड़ी मालाएं रखता है और कचग्राह ग्रहीत तथा करतल विमुक्त फूलों से पुष्पोपचार करता है, धूप देता है और जिधर मुखमण्डप का बहुमध्यभाग है वहाँ जाकर लोमहस्तक से प्रमार्जन करता है, दिव्य उदकधारा से सिंचन करता है. सरस गोशीर्ष चंदन से लिप्त पांचों अंगलियों से एक मंडल बनाता है उसकी अर्चना करता है, कचग्राह गृहीत और करतल विमुक्त होकर बिखरे हुए पांचों वर्गों के फूलों का ढेर लगाता है, धूप देता है और जिधर मुखमंडप का पश्चिम दिशा का द्वार है उधर जाता है। ___ मुखमंडप के पश्चिम दिशा के द्वार पर आकर लोमहस्तक से द्वार शाखाओं, शालभंजिकाओं और व्यालरूपक का प्रमार्जन करता है, दिव्य उदगधारा से सिंचन करता है, सरस गोशीर्ष चंदन का लेप करता है यावत् अर्चना करता है, ऊपर से नीचे तक लंबी लटकती हुई बड़ी-बड़ी मालाएं रखता है, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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