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________________ ८६ जीवाजीवाभिगम सूत्र worrore.torrrrrrrrrrrrrrrr................................... देवसयणिज्जस्स वण्णओ, उववायसभाए णं उप्पिं अट्ठट्ठमंगलगा झया छत्ताइछत्ता जाव उत्तिमागारा, तीसे णं उववायसभाए उत्तरपुरस्थिमेणं एत्थ णं एगे महं हरए पण्णत्ते, से णं हरए अद्धतेरसजोयणाई आयामेणं छकोसाइं जोयणाई विक्खंभेणं दस जोयणाइं उव्वेहेणं अच्छे सण्हे वण्णओ जहेवणंदाणं पुक्खरिणीणंजाव तोरणवण्णओ, तस्स णं हरयस्स उत्तरपुरस्थिमेणं एत्थ णं एगा महं अभिसेयसभा पण्णत्ता जहा सभा सुहम्मा तं चेव णिरवसेसं जाव गोमाणसीओ भूमिभाए उल्लोए तहेव॥ कठिन शब्दार्थ - उववायसभाए - उपपात सभा, हरए - सरोवर। भावार्थ - उस सिद्धायतन के उत्तरपूर्व-ईशानकोण में एक बड़ी उपपात सभा कही गई है। सुधर्मा सभा की तरह गोमानसिका पर्यन्त सारा वर्णन कह देना चाहिये। उपपात सभा में भी द्वार, मुखमण्डप आदि सब वर्णन भूमिभाग यावत् मणियों का स्पर्श आदि कह देना चाहिये। (यहां सुधर्मा सभा का . वर्णन भूमिभाग और मणियों के स्पर्श तक कहना चाहिये)। उस बहुसमरमणीय भूमिभाग के मध्य एक बड़ी मणिपीठिका कही गई है। वह एक योजन लम्बीचौड़ी और आधा योजन मोटी है। सर्वरत्नमय और स्वच्छ है। उस मणिपीठिका के ऊपर एक बड़ा देवशयनीय कहा गया है। उस देवशयनीय का वर्णन पूर्वानुसार कह देना चाहिये। उस उपपात सभा के ऊपर आठ-आठ मंगल, ध्वजा और छत्रातिछत्र हैं जो उत्तम आकार के हैं और रत्नों से शोभायमान हैं। उस उपपात सभा के उत्तरपूर्व में एक बड़ा सरोवर कहा गया है। वह सरोवर साढे बारह योजन लम्बा, छह योजन एक कोस चौड़ा और दस योजन ऊंडा है। वह स्वच्छ है, मृदु है आदि वर्णन नंदापुष्करिणी के समान यावत् तोरण तक कह देना चाहिये। उस सरोवर के उत्तर पूर्व (ईशानकोण) में एक अभिषेक सभा कही गई है उसका सारा वर्णन सुधर्मा सभा की तरह कह देना चाहिये यावत् गोमानसिका, भूमिभाग, उल्लोक (भीतरी छत) आदि का वर्णन सुधर्मा सभा की तरह ही समझना चाहिये। तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं एगा महं मणिपेढिया पण्णत्ता जोयणं आयामविक्खंभेणं अद्धजोयणं बाहल्लेणं सव्वमणिमया अच्छा०॥ तीसे णं मणिपेढियाए उप्पिं एत्थ णं एगे महं सीहासणे पण्णत्ते, सीहासणवण्णओ अपरिवारो॥ तत्थ णं विजयस्स देवस्स सुबहु अभिसेक्के भंडे संणिक्खित्ते चिट्ठइ, अभिसेयसभाए उप्पिं अट्ठमंगलगा जाव उत्तिमागारा सोलसविहेहिं रयणेहिं( उवसोभिया), तीसे णं अभिसेयसभाए उत्तरपुरथिमेणं एत्थ णं एगा महं अलंकारियसभा पण्णत्ता अभिसेयसभावत्तव्वया भाणियव्वा जाव गोमाणसीओ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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