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प्रथम प्रतिपत्ति - तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों का वर्णन - जलचर के भेद
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चउगइया दुआगइया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता से त्तं सम्मुच्छिम जलयर पंचेंदिय तिरिक्खजोणिया ॥ ३५ ॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उन जीवों के कितने शरीर कहे गये हैं?
उत्तर - हे गौतम! उन जीवों के तीन शरीर कहे गये हैं । यथा औदारिक, तैजस और कार्मण । उनके शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट एक हजार योजन। वे सेवार्त्त संहनन वाले, हुंडक संस्थान वाले, चार कषाय वाले, चार संज्ञाओं वाले, तीन लेश्याओं वाले, पांच इन्द्रियों वाले हैं। उनके तीन समुद्घात होते हैं। वे संज्ञी नहीं असंज्ञी हैं। नपुंसक वेद वाले हैं। उनके पांच पर्याप्तियाँ और पांच अपर्याप्तियाँ होती है। उनके दो दृष्टि, दो दर्शन, दो ज्ञान, दो अज्ञान, दो योग और दो प्रकार के उपयोग होते हैं । वे छहों दिशाओं के पुद्गलों का आहार करते हैं । वे तिर्यंच और मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं किंतु देवों और नैरयिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते । तिर्यंचों में से भी असंख्यातवर्ष की आयु वाले उत्पन्न नहीं होते । अकर्मभूमि और अन्तरद्वीपों के असंख्यातवर्ष की आयु वाले मनुष्य भी इनमें उत्पन्न नहीं होते हैं ।
इन जीवों की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट पूर्व कोटि की है। ये मारणांतिक समुद्घात से समवहत होकर भी मरते हैं और असमवहत होकर भी मरते हैं । ये जीव मरकर कहां उत्पन्न होते हैं ? ये नरक में भी उत्पन्न होते हैं, तिर्यंचों में भी उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों और देवों में भी उत्पन्न होते हैं । यदि नरक में उत्पन्न होते हैं तो पहली रत्नप्रभा नरक तक ही उत्पन्न होते हैं शेष नरकों में नहीं । तिर्यंचों में सभी तिर्यंचों में संख्यात वर्ष की आयु वालों में भी, असंख्यात वर्ष की आयु वालों में भी, चतुष्पदों में भी और पक्षियों में भी उत्पन्न होते हैं। मनुष्य में उत्पन्न हों तो सभी कर्मभूमि के मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं, अकर्मभूमि के मनुष्यों में उत्पन्न नहीं होते हैं। अंतरद्वीपों में भी संख्यात वर्ष की आयु वालों में भी और असंख्यात वर्ष की आयु वालों में भी उत्पन्न होते हैं। यदि देवों में उत्पन्न हों तो वाणव्यंतर देवों तक उत्पन्न होते हैं। ये जीव चार गति में जाने वाले और दो गतियों से आने वाले हैं। ये प्रत्येक शरीरी और असंख्यात हैं। यह जलचर सम्मूर्च्छिम तिर्यंच पंचेन्द्रियों का निरूपण हुआ ।
विवेचन - जलचर सम्मूर्च्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों के २३ द्वारों का कथन इस प्रकार हैं १. शरीर द्वार - जलचर संमूर्च्छिमं पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में शरीर पावे तीन औदारिक, तैजस और
कार्मण ।
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२. अवगाहना द्वार - इनकी अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक हजार योजन होती है ।
३. संहनन द्वार - ये सेवार्त्त संहनन वाले होते हैं।
४. संस्थान द्वार - इन के शरीर हुंडक संस्थान वाले होते हैं।
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