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प्रथम प्रतिपत्ति - अपकायिक जीवों का वर्णन ************wwwwwwwwwwwwwwwwww
उत्तर - हे गौतम! अप्कायिक दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा - सूक्ष्म अप्कायिक और बादर अप्कायिक। सूक्ष्म अप्कायिक दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा - पर्याप्तक और अपर्याप्तक।
विवेचन - अप् (जल) ही जिन जीवों का शरीर हैं वे अप्कायिक कहलाते हैं। अप्कायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं-१. सूक्ष्म अप्कायिक - जिन पानी के जीवों के सूक्ष्म नामकर्म का उदय हो और २. बादर अप्कायिक-जिन पानी के जीवों के बादर नामकर्म का उदय हो वे बादर अप्कायिक कहलाते हैं। सूक्ष्म अप्कायिक जीव पर्याप्तक और अपर्याप्तक के भेद से दो प्रकार के होते हैं।
तेसिणं भंते! जीवाणं कई सरीरया पण्णत्ता? ___ गोयमा! तओ सरीरया पण्णत्ता, तं जहा - ओरालिए तेयए कम्मए जहेव सुहुपुढविक्काइयाणं णवरंथिबुगसंठिया पण्णत्ता, सेसं तं चेव जाव दुगइया दुआगइया परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता।से त्तं सुहमआउक्काइया॥१६॥
कठिन शब्दार्थ - थिबुगसंठिया - स्तिबुक (बुबुद्) संस्थान वाले। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! उन (सूक्ष्म अप्कायिक) जीवों के कितने शरीर कहे गये हैं ?
उत्तर - हे गौतम! उन जीवों के तीन शरीर कहे गये हैं। यथा औदारिक, तैजस और कार्मण। शेष सभी द्वारों का वर्णन सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों की तरह समझना चाहिये। विशेषता यह है कि उनका संस्थान स्तिबुक (बुबुद्) रूप कहा गया है। शेष सब उसी तरह कह देना चाहिये यावत् वे दो गति वाले और दो आगति वाले हैं। प्रत्येक शरीरं हैं और असंख्यात कहे गये हैं। यह सूक्ष्म अप्कायिक का वर्णन हुआ।
- विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में सूक्ष्म अप्कायिक जीवों के विषय में २३ द्वार कहे गये हैं। जो सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों के समान ही समझना चाहिये अन्तर इतना है कि सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों का संस्थान मसूर की दाल के समान होता है जबकि सूक्ष्म अप्कायिक जीवों का संस्थान स्तिबुक (बुद्बुद) के समान है।
से किं तं बायर आउक्काइया?
बायर आउक्काइया अणेगविहा पण्णत्ता, तंजहा-ओसा हिमे जाव जे यावण्णे तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पण्णत्ता तंजहा-पज्जत्ता अपज्जत्ता य, तं चेव सव्वं णवरं थिबुग संठिया, चत्तारि लेसाओ, आहारो णियमा छहिसिं उववाओ तिरिक्ख जोणियमणुस्सदेवेहितो, ठिई जहण्णणं अंतोमुहूत्तं उक्कोसेणं सत्तवाससहस्साई सेसं तं चेव जहा बायर पुढविकाइया जाव दुगइया तिआगइया परित्ता असंखेजा पण्णत्ता समणाउसो।सेत्तं बायर आउक्काइया, सेत्तं आउक्काइया॥१७॥
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