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जीवाजीवाभिगम सूत्र
पृथ्वीकाय के जीव प्रत्येक शरीरी हैं और असंख्यात लोकाकाश प्रमाण हैं। इस प्रकार बादर पृथ्वीकाय का वर्णन हुआ। इस प्रकार पृथ्वीकाय का निरूपण पूर्ण हुआ।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों की तरह बादर पृथ्वीकायिकों का भी २३ द्वारों से वर्णन किया गया है। सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों और बादर पृथ्वीकायिकों का वर्णन लगभग समान है किंतु निम्न द्वारों में अंतर है -
१. लेश्याद्वार - सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों में तीन लेश्या कही गई है जबकि बादर पृथ्वीकायिकों में चार लेश्याएं पाई जाती हैं - १. कृष्ण लेश्या २. नील लेश्या ३. कापोत लेश्या और ४. तेजो लेश्या। दूसरे देवलोक तक के देव अपने भवन और विमानों में अति मूर्छा होने के कारण रत्नं कुण्डल आदि में उत्पन्न होते हैं वे तेजोलेश्या वाले भी होते हैं। आगम में कहा है कि "जल्लेसे मरइ तल्लेसे उववज्जइ" - जिस लेश्या में जीव मरता है उसी लेश्या में उत्पन्न होता है इसलिये थोड़े समय के लिए अपर्याप्त अवस्था में उनमें तेजोलेश्या भी पाई जाती है।
२. आहार द्वार - बादर पृथ्वीकायिक जीव नियम से छहों दिशाओं से आहार ग्रहण करते हैं । क्योंकि बादर पृथ्वीकायिक जीव लोक के मध्य में ही उत्पन्न होते हैं, किनारे नहीं इसलिये उनमें व्याघात नहीं होता। - ३. उपपात द्वार - देवों से आकर भी जीव बादर पृथ्वीकाय में उत्पन्न होते हैं इसलिये तिर्यंचों, , मनुष्यों और देवों से उपपात कहा है। . ४. स्थिति द्वार - बादर पृथ्वीकायिक जीवों की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बावीस हजार वर्ष की होती है।
५. गति आगति द्वार - बादर पृथ्वीकायिकों में आगति तीन गतियों से और गति दो गतियों में कही है क्योंकि देव गति से भी आकर जीव बादर पृथ्वीकायिक में उत्पन्न होते हैं। बादर पृथ्वीकायिक मर कर तिर्यंच गति और मनुष्य गति में उत्पन्न होते हैं। अतः गति दो गतियों की कही है।
शेष सभी द्वारों का वर्णन सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों के समान ही समझना चाहिये। इस प्रकार बादर पृथ्वीकाय का वर्णन हुआ। इसके साथ ही पृथ्वीकाय का वर्णन पूरा हुआ।
.. अपकायिक जीवों का वर्णन से किं तं आउक्काइया?
आउक्काइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - सुहमआउक्काइया य बायर आउक्काइया य।सुहम आउक्काइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्ता य अपज्जत्ता य।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! अप्कायिक क्या है ?
मा।
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