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प्रथम प्रतिपत्ति - बादर पृथ्वीकायिक जीवों का वर्णन
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भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! उन (बादर पृथ्वीकायिक) जीवों के कितने शरीर कहे गये हैं ?
उत्तर - हे गौतम! उन जीवों के तीन शरीर कहे गये हैं वे इस प्रकार हैं - औदारिक तैजस कार्मण। इस प्रकार सब कथन पूर्ववत् जानना चाहिये विशेषता यह है कि इनके चार लेश्याएं होती हैं। शेष सारा वर्णन सूक्ष्म पृथ्वीकायिक की तरह समझना चाहिये। यावत् नियम से छहों दिशाओं का आहार ग्रहण करते हैं। ये बादर पृथ्वीकायिक जीव तिर्यंचयोनिक, मनुष्य और देवों से आकर उत्पन्न होते हैं। देवों से आकर उत्पन्न होते हैं तो यावत् सौधर्म और ईशान देवलोक से आते हैं। यहाँ पर खर बादर पृथ्वीकाय में देवों का उपपात समझना चाहिये। श्लक्ष्ण बादर पृथ्वीकाय में देवों का उपपात नहीं होता है। इनकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की होती है।
तेणं भंते! जीवा मारणंतिय समुग्धाएणं किं समोहया मरंति असमोहया मरंति? गोयमा! समोहया वि मरंति असमोहया वि मरंति।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! बादर पृथ्वीकायिक जीव मारणांतिक समुद्घात से समवहत होकर. मरते हैं या असमवहत होकर मरते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! ये जीव समवहत होकर भी मरते हैं और असमवहत होकर भी मरते हैं।
ते णं भंते! जीवा अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति? कहिं उववज्जति? किं णेरइएसु उववज्जंति?० पुच्छा। - गोयमा! णो णेरइएसु उववजंति तिरिक्खजोणिएसु उववजंति मणुस्सेसु उववज्जंति णो देवेसु उववज्जति तं चेव जाव असंखेज्जवासाउयवज्जेहिंतो उववज्जंति।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! ये जीव वहां से मर कर कहां जाते हैं? कहां उत्पन्न होते हैं ? क्या नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं आदि प्रश्न?
उत्तर - हे गौतम! ये जीव नैरयिकों में उत्पन्न नहीं होते हैं, तिर्यंचों में उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं, देवों में उत्पन्न नहीं होते। तिर्यंचों और मनुष्यों में भी असंख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यंचों और मनुष्यों में उत्पन्न नहीं होते। इत्यादि।
ते णं भंते! जीवा कइगइया कइ आगइया पण्णत्ता?
गोयमा! दुगइया तिआगइया परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता संमणाउसो! से तं बायर पुढविक्काइया।से त्तं पुढविकाइया॥१५॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! वे जीव कितनी गति वाले और कितनी आगति वाले कहे गये हैं ? उत्तर - हे गौतम! दो गति वाले और तीन आगति वाले कहे गये हैं। हे आयुष्मन् श्रमण! वे बादर
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