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प्रथम प्रतिपत्ति - बादर पृथ्वीकायिक जीवों का वर्णन
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२३. गति आगति द्वार ते णं भंते! जीवा कइगइया कइ आगइया पण्णत्ता?
गोयमा! दुगइया दुआगइया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता समणाउसो! से त्तं सुहुम पुढविक्काइया॥१३॥
कठिन शब्दार्थ - दुगइया - दुगतिका-दो गति वाले, दुआगइया - दुआगतिका-दो आगति वाले, परित्ता - परित्त-प्रत्येक शरीर वाले, समणाउसो - हे आयुष्मन् श्रमण।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! वे कितनी गति में जाने वाले और कितने गति से आने वाले हैं ?
उत्तर - हे गौतम! वे दो गति वाले और दो आगति वाले हैं। हे आयुष्मन् श्रमण! वे जीव प्रत्येक शरीर वाले और असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण कहे गये हैं। यह सूक्ष्म पृथ्वीकायिक का वर्णन पूरा हुआ।
विवेचन - जीव मर कर भवान्तर में जावे, उसे 'गति' कहते हैं। भवान्तर से आकर उत्पन्न होने को 'आगति' कहते हैं। अमुक दण्डक में कितनी गति एवं कितने दण्डकों से जीव आते हैं, जाते हैं; यह बताना गति आगति द्वार का विषय है। इस प्रकार उपपात, च्यवन द्वार से इसमें कुछ भिन्नता है।
सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव दो गति वाले और दो आगति वाले कहे गये हैं। ये जीव मर कर तिर्यंच गति और मनुष्य गति में उत्पन्न होते हैं अतः इनकी दो गतियां हैं और तिर्यंच और मनुष्य गति से ही आकर उत्पन्न होते हैं अत: सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव दो आगति (तिर्यंच और मनुष्य गति) वाले हैं। इस प्रकार प्रस्तुत सूत्र में २३ द्वारों द्वारा सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों का विशद वर्णन किया गया है।
. बादर पृथ्वीकायिक जीवों का वर्णन - से किं तं बायर पुढविकाइया?
बायर पुढविकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - सण्हबायर पुढविक्काइया य खरबायर पुढविक्काइया य १४॥
भावार्थ - बादर पृथ्वीकायिक क्या है ? - बादर पृथ्वीकायिक दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा - श्लक्ष्ण बादर पृथ्वीकायिक और खर बादर पृथ्वीकायिक।
• विवेचन - बादर नाम कर्म के उदय से जिन पृथ्वीकायिक जीवों का शरीर बादर हो उन्हें बादर पृथ्वीकायिक कहते हैं। बादर पृथ्वीकायिक जीवों के दो भेद हैं - १. श्लक्ष्ण बादर पृथ्वीकायिक और २. खर बादर पृथ्वीकायिक। जो मिट्टी पीसे हुए आटे के समान मृदु हो, घुलनशील हो एवं जिसमें पानी
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