________________
३८
जीवाजीवाभिगम सूत्र
पृथक्-पृथक् निकले, उसे समोहया मरण कहते हैं। जो गेंद (दडी) के उछलने की गति से मरे अर्थात् बंदूक की गोली के समान जीव के प्रदेश एक साथ निकले, उसे असमोहया मरण कहते हैं।
. २२. च्यवन द्वार तेणं भंते! जीवा अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति? कहिं उववज्जंति? किं णेरइएसु उववजंति, तिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति, मणुस्सेसु उववन्जंति, देवेसु उववज्जंति?
गोयमा! णो णेरइएसु उववजंति तिरिक्खजोणिएसु उववजंति मणुस्सेसु उववजंति, णो देवेसु उववज्जंति।
किं एगिदिएसु उववज्जति जाव पंचिंदिएसु उववजंति?
गोयमा! एगिदिएसु उववज्जति जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववजंति, असंखेज्जवासाउयवज्जेसु पज्जत्तापज्जत्तएसु उववजंति मणुस्सेसु अकम्मभूमगअंतरदीवग-असंखेज्जवासाउयवज्जेसु पज्जत्तापज्जत्तेसु उववज्जंति।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! वे जीव वहां से निकल कर अगले. भव में कहां जाते हैं ? कहां उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं, तिर्यंचों में उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं या देवों में उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! वे नैरयिकों में उत्पन्न नहीं होते, तिर्यंचों में उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं, देवों में उत्पन्न नहीं होते।
_ प्रश्न - हे भगवन्! क्या वे एकेन्द्रियों में यावत् पंचेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं? ... उत्तर - हे गौतम! वे एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में उत्पन्न होते हैं लेकिन असंख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यंचों को छोड़ कर शेष पर्याप्त-अपर्याप्त तिर्यंचों में उत्पन्न होते हैं। अकर्मभूमि वाले, अन्तरद्वीप वाले तथा असंख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्यों को छोड़ कर शेष पर्याप्त-अपर्याप्त मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं।
विवेचन - जीव वर्तमान भव को छोड़ कर अन्य भव की पर्याय को धारण करे, उसे 'च्यवन' कहते हैं। सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव मर कर न तो नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं और न देवों में उत्पन्न होते हैं। वे तिर्यंचों और मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं। तिर्यंचों में उत्पन्न होते हैं तो असंख्यात वर्ष की आयु वाले भोग भूमि के तिर्यंचों को छोड़ कर शेष एकेन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय पर्याप्त और अपर्याप्त तिर्यंचों में उत्पन्न होते हैं। मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं तो अकर्मभूमिज, अन्तरद्वीपज और असंख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्यों को छोड़ कर शेष पर्याप्त या अपर्याप्त मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org