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. प्रथम प्रतिपत्ति - सूक्ष्म पृथ्वीकायिक के २३ द्वारों का निरूपण - समवहत असमवहत द्वार ३७
मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं तो अकर्मभूमि वाले और असंख्यात वर्षों की आयु वालों को छोड़ कर शेष मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार व्युत्क्रांति उपपात कहना चाहिये।
विवेचन - 'प्रत्येक दण्डक में एक साथ आने वाले जीवों की संख्या का निर्देश करना' इस को यहां पर उपपात द्वार के रूप में बताया है। -
ऐसा ही भव स्वभाव है जिसके कारण सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव देव और नरक से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं। सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव असंख्यात वर्षों की आयुष्य वाले तिर्यंचों को छोड़ कर शेष पर्याप्त-अपर्याप्त तिर्यंचों से आकर उत्पन्न होते हैं। असंख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यंच इनमें उत्पन्न नहीं होते। अकर्मभूमि के, अंतरद्वीपों के और असंख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमि में उत्पन्न मनुष्यों को छोड़ कर शेष पर्याप्त-अपर्याप्त मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं।
२०. स्थिति द्वार तेसिणं भंते! जीवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? मोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उन जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उत्तर - हे गौतम! उन जीवों की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट भी अंतर्मुहूर्त की है। विवेचन - जीव जितने काल तक जिस भव की पर्याय को धारण करे, उसे स्थिति कहते हैं।
सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट भी अंतर्मुहूर्त ही है किंतु जघन्य अंतर्मुहूर्त से उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त अधिक समझना चाहिये।
२१. समवहत् असमवहत द्वार ते णं भंते! जीवा मारणंतिय समुग्घाएणं किं समोहया मरंति असमोहया मरंति? गोयमा! समोहया वि मरंति असमोहया वि मरंति।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! वे जीव मारणांतिक समुद्घात से समवहत होकर मरते हैं या असमवहत होकर मरते हैं ?
उत्तर - हे गौतम ! वे जीव मारणांतिक समुद्घात से समवहत होकर भी मरते हैं और असमवहत होकर भी मरते हैं। .
.. विवेचन - मारणांतिक समुद्घात करके जो मरण होता है वह समवहत है और मारणांतिक समुद्घात किये बिना जो मरण होता है वह असमवहत है। सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव दोनों प्रकार का मरण मरते हैं। जो ईलिका गति से समुद्घात करके मरे अर्थात् कीडी की कतार की तरह जीव प्रदेश
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