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प्रथम प्रतिपत्ति - सूक्ष्म पृथ्वीकायिक के २३ द्वारों का निरूपण - संहनन द्वार
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लगे हुए आठ प्रकार के कर्म पुद्गलों को कार्मण शरीर कहते हैं। जिस तरह बाग का माली प्रत्येक क्यारी में पानी पहुंचाता है, उसी तरह जो प्रत्येक शरीर के अवयव में रसादिकों का परिणमन करता है तथा कर्मों का रस परिणमन कराता है उसको कार्मण शरीर कहते हैं। यह शरीर ही सब शरीरों का बीज (मूल कारण) है।
. तैजसशरीर और कार्मण शरीर ये दोनों शरीर अनादिकाल से जीव के साथ लगे हुए हैं। मोक्ष प्राप्त किये बिना ये जीव से अलग नहीं होते। जब जीव मरण स्थान को छोड़ कर उत्पत्ति स्थान को जाता है तब भी ये दोनों शरीर जीव के साथ रहते हैं।
इन पांच शरीरों में से सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों के तीन शरीर होते हैं - १. औदारिक २. तैजस . और ३. कार्मण।
२. अवगाहना द्वार तेसिणं भंते! जीवाणं के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं अंगुलासंखेज्जइभागं उक्कोसेणवि अंगुलासंखेज्जइ भागं॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उन सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों के शरीर की अवगाहना कितनी बड़ी कही गई है?
. उत्तर - हे गौतम! उन जीवों की शरीरावगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट से भी अंगुल का असंख्यातवां भाग होती है।
विवेचन - जीव का शरीर, जितने आकाश प्रदेशों को अवगाहे (रोके) उसे अवगाहना कहते हैं।
सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों की अवगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट भी अंगुल का असंख्यातवां भाग होती है किंतु जघन्य से उत्कृष्ट अवगाहना अधिक समझनी चाहिये।
३.संहनन द्वार तेसि णं भंते! जीवाणं सरीरा किं संघयणा पण्णत्ता? गोयमा! छेवट्ठ संघयणा पण्णत्ता। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उन जीवों के शरीर किस संहनन वाले कहे गये हैं ? उत्तर- हे गौतम! उन जीवों के शरीर सेवार्त संहनन वाले कहे गये हैं। विवेचन - हड्डियों की रचना विशेष को 'संहनन' कहते हैं। इसके छह भेद इस प्रकार हैं -
१. वऋषभ-नाराच संहनन - वज्र का अर्थ कील है, ऋषभ का अर्थ वेष्टन-पट्ट (पट्टा) है और नाराच का अर्थ दोनों ओर से मर्कट-बंध है। जिस संहनन में दोनों ओर से मर्कट-बन्ध द्वारा जुड़ी
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