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जीवाजीवाभिगम सूत्र
उदार अर्थात् दूसरे शरीरों की अपेक्षा विशाल अर्थात् बड़े परिमाण वाला होने से यह औदारिक शरीर कहा जाता है। वनस्पतिकाय की अपेक्षा औदारिक शरीर की अवस्थित अवगाहना एक हजार योजन झाझेरी (कुछ अधिक) है। अन्य सभी शरीरों की अवस्थित अवगाहना इससे कम हैं। अथवा अन्य शरीरों की अपेक्षा अल्प प्रदेश परिमाण में बड़ा होने से यह शरीर औदारिक शरीर कहलाता है । अथवा -
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हाड़ मांस लोही आदि से बना हुआ शरीर औदारिक कहलाता है। मनुष्य, पशु, पक्षी, पृथ्वीकाय आदि का शरीर औदारिक है।
२. वैक्रिय शरीर जिस शरीर से विविध अर्थात् नाना रूप और आकार बनाने की क्रियाएं अथवा विशिष्ट क्रियाएं होती है वह वैक्रिय शरीर कहलाता है। जैसे एक रूप होकर अनेक रूप धारण करना, अनेक रूप होकर एक रूप धारण करना, छोटे शरीर से बड़ा शरीर बनाना और बड़े शरीर से छोटा शरीर बनाना, पृथ्वी और आकाश में चलने योग्य शरीर धारण करना, दृश्य अदृश्य रूप बनाना - आदि । यह शरीर हाड़, मांस, रक्त, मज्जा आदि सात धातुओं से रहित होता है।
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वैक्रिय शरीर दो प्रकार का है १. औपपातिक वैक्रिय शरीर और २. लब्धि प्रत्यय वैक्रिय शरीर । जो वैक्रिय शरीर जन्म से ही मिलता है वह औपपातिक वैक्रिय शरीर है। सभी देवता और नारकी जीव जन्म से ही वैक्रिय शरीरधारी होते हैं। जो वैक्रिय शरीर तप आदि द्वारा प्राप्त लब्धि विशेष से मिलता है वह लब्धि प्रत्यय वैक्रिय शरीर है। तिर्यंच और मनुष्य में लब्धि प्रत्यय वैक्रिय शरीर होता है।
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३. आहारक शरीर प्राणी दया के लिए, दूसरे द्वीप में रहे हुए तीर्थंकर भगवान् की ऋद्धि ऐश्वर्य देखने के लिये अथवा अपना संशय निवारणार्थ उनसे प्रश्न पूछने के लिये तथा नया ज्ञान प्राप्त करने के लिये चौदह पूर्वधारी मुनिराज अपनी लब्धि से अतिविशुद्ध स्फटिक के सदृश एक हाथ पुतला (चर्मचक्षु से अदृश) अपने शरीर में से निकालते हैं, उस पुतले को तीर्थंकर भगवान् या केवली भगवान् के पास भेजते हैं। वह तीर्थंकर भगवान् के पास जा कर अपना कार्य करके फिर वह एक हाथ का पुतला जाकर उन मुनिराज के शरीर में प्रवेश करता है उसको आहारक शरीर कहते हैं। वे मुनिराज यदि उस लब्धि फोड़ने की आलोचना कर लेवे तो आराधक होते हैं, यदि आलोचना न करें तो विराधक होते हैं।
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४. तैजस शरीर - तैजस वर्गणा के पुद्गलों से बना हुआ, कार्मण शरीर का सहवर्ती, आत्मव्यापी, शरीर की उष्मा से पहचाना जाने वाला, खाये हुए आहार को परिणमाने वाला तथा तेजो लब्धि के द्वारा गृहीत पुद्गलों को तैजस शरीर कहा जाता है।
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५.
कार्मण शरीर - कर्मों से बना हुआ शरीर कार्मण कहलाता है अथवा जीव के प्रदेशों के साथ
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