SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम प्रतिपत्ति - सूक्ष्म पृथ्वीकायिक के २३ द्वारों का निरूपण - शरीर द्वार १७ एकेन्द्रिय जीवों में चार पर्याप्तियां होती है - आहार पर्याप्ति, शरीर पर्याप्ति, इन्द्रिय पर्याप्ति और श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति। बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय में पांच पर्याप्तियाँ (उपरोक्त चार और पांचवीं भाषा पर्याप्ति) होती है और संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में छहों पर्याप्तियां होती है। जिस जीव में जितनी पर्याप्तियां संभव है वह जीव जब उतनी पर्याप्तियां पूरी कर लेता है तब वह पर्याप्तक कहलाता है। एकेन्द्रिय जीव स्वयोग्य चार पर्याप्तियां बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय पांच पर्याप्तियां और संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव छहों पर्याप्तियां पूरी करने पर पर्याप्तक कहे जाते हैं। जो जीव जब तक स्वयोग्य पर्याप्तियाँ पूरी नहीं बांध लेता है तब तक वह अपर्याप्तक कहा जाता है। जीव तीन पर्याप्तियाँ (आहार, शरीर, इन्द्रिय) पूर्ण करके चौथी के अधूरे रहने पर मरते हैं, पहले नहीं क्योंकि जीव आगामी भव की आयु बाँध कर ही मृत्यु प्राप्त करते हैं और आयु का बन्ध उन्हीं जीवों को होता है जिन्होंने आहार, शरीर और इन्द्रिय ये तीन पर्याप्तियाँ पूर्ण कर ली हैं। ... यहाँ पर्याप्तक का आशय लब्धि पर्याप्तक (पर्याप्त नामकर्म के उदय वाले) और अपर्याप्तक का आशय य लब्धि अपर्याप्तक (अपर्याप्त नामकर्म के उदय वाले) अर्थात - अपर्याप्त अवस्था में काल करने वाले समझना चाहिये। इस प्रकार सूक्ष्म पूथ्वीकायिक जीवों के पर्याप्तक, अपर्याप्तक दो भेद हुए। सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों के विषय में शेष वक्तव्यता कहने के लिए दो संग्रहणी गाथाएं दी गई है जिनमें २३ द्वारों के नाम दिये हैं। आगे के सूत्रों में क्रमशः शरीर आदि द्वारों का कथन किया जाता है - सूक्ष्म पृथ्वीकायिक के 23 द्वारों का निरूपण १.शरीरद्वार तेसिंणं भंते! जीवाणं कइ सरीरया पण्णत्ता? गोयमा! तओ सरीरया पण्णत्ता, तं जहा - ओरालिए, तेयए, कम्मए। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उन (सूक्ष्म पृथ्वीकायिक) जीवों के कितने शरीर कहे गये हैं ? उत्तर - हे गौतम! उन जीवों के तीन शरीर कहे गये हैं। यथा - १. औदारिक २. तैजस और ३. कार्मण। विवेचन - जो प्रतिक्षण जीर्ण शीर्ण होता रहता है उसे शरीर कहते हैं। शरीर पांच प्रकार का कहा गया है - १. औदारिक २. वैक्रिय ३. आहारक ४. तैजस और ५. कार्मण। . १. औदारिक शरीर - उदार अर्थात् प्रधान अथवा स्थूल पुद्गलों से बना हुआ शरीर औदारिक कहलाता है। तीर्थंकर भगवान् का शरीर सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वप्रधान पुद्गलों से बनता है और सर्वसाधारण का शरीर स्थूल असार पुद्गलों से बना हुआ होता है। अथवा - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy