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. जीवाजीवाभिगम सूत्र
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वह अपर्याप्तक जीव है। आहारादि के पुद्गलों को ग्रहण कर उन्हें शरीर आदि रूप परिणत करने की आत्मा की शक्ति को पर्याप्ति कहते हैं। पर्याप्तियाँ छह प्रकार की होती है। यथा -
१. आहार पर्याप्ति - जिस शक्ति से जीव आहार को ग्रहण कर उसे रस और खल भाग में परिणत करता है, उसे आहार पर्याप्ति कहते हैं।
२. शरीर पर्याप्ति - जिस शक्ति से जीव रस रूप परिणत आहार को रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और वीर्य रूप सात धातुओं में परिणत करता है उसे शरीर पर्याप्ति कहते हैं।
३. इन्द्रिय पर्याप्ति - जिस शक्ति से जीव इन्द्रिय योग्य पुद्गलों को ग्रहण कर उन्हें इन्द्रिय रूप में परिणत करता है उसे इन्द्रिय पर्याप्ति कहते हैं।
४. श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति - जिस शक्ति से जीव श्वासोच्छ्वास योग्य पुद्गलों को ग्रहण करके श्वास और उच्छ्वास रूप में परिणत करता है उसे श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति कहते हैं।
५. भाषा पर्याप्ति - जिस शक्ति से जीव भाषा योग्य पुद्गलों को ग्रहण करके भाषा रूप में परिणत करता है वह भाषा पर्याप्ति है।
६. मनः पर्याप्ति - जिस शक्ति के द्वारा जीव मनोवर्गणा के पुद्गलों को ग्रहण करके उन्हें मन रूप में परिणत करता है उसे मनः पर्याप्ति कहते हैं।
इन छहों पर्याप्तियों का आरंभ एक साथ होता है किंतु उनकी पूर्णता अलग अलग समय में होती है। सबसे पहले आहार पर्याप्ति एक समय में पूर्ण होती है। इस बात को समझाने के लिये प्रज्ञापना सूत्र के आहार पद के द्वितीय उद्देशक में इस प्रकार कहा गया है -
प्रश्न - आहारपज्जत्तीए अपज्जत्तए णं भते! किं आहारए अणाहारए? उत्तर - गोयमा! णो आहारए अणाहारए।
अर्थात् - हे भगवन्! आहार पर्याप्ति से अपर्याप्त जीव आहारक है या अनाहारक? हे गौतम! आहारक नहीं अनाहारक है।
आहार पर्याप्ति से अपर्याप्त जीव विग्रह गति में ही होता है, उपपात क्षेत्र में आया हुआ नहीं। उपपात क्षेत्र में आया हुआ जीव प्रथम समय में ही आहारक होता है। इससे आहारक पर्याप्ति का काल एक समय का सिद्ध होता है। यदि उपपात क्षेत्र में आने के बाद भी आहारपर्याप्ति से अपर्याप्त होता तो प्रज्ञापना सूत्र में सिय आहारए सिय अणाहारए' - कदाचित् आहारक और कदाचित् अनाहारक ऐसा उत्तर दिया गया होता। जैसा कि शरीर आदि पर्याप्तियों में दिया गया है। आहार पर्याप्ति के अलावा शरीर आदि पर्याप्तियां अलग अलग एक एक अन्तर्मुहूर्त में पूरी होती है। सभी पर्याप्तियों का समाप्तिकाल भी अंतर्मुहूर्त ही होता है क्योंकि अन्तर्मुहूर्त अनेक प्रकार का है।
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