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________________ प्रथम प्रतिपत्ति - स्थावर के भेद पुढविकाइया दुविहां पण्णत्ता, तं जहा - सुहुमपुढविकाइया य बायरपुढविकाइया य॥११॥ भावार्थ - पृथ्वीकायिक क्या है? ' पृथ्वीकायिक दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा - १. सूक्ष्म पृथ्वीकायिक और २. बादर . पृथ्वीकायिक। विवेचन - पृथ्वीकायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं - सूक्ष्म पृथ्वीकायिक और बादर पृथ्वीकायिक। सूक्ष्म नामकर्म के उदय से जीव सूक्ष्म और बादर नामकर्म के उदय से जीव बादर कहलाता है। जीवों में सूक्ष्मता और बादरता कर्मोदयजनित है। बेर और आंवले की तरह सूक्ष्मता और बादरता यहां अपेक्षित नहीं है। सूक्ष्म नाम कर्म के उदय वाले जो पृथ्वीकायिक हैं वे सूक्ष्मपृथ्वीकायिक कहलाते हैं और बादर नामकर्म के उदय वाले जो पृथ्वीकायिक हैं वे बादर पृथ्वीकायिक हैं। सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव सारे लोक में व्याप्त हैं जबकि बादर पृथ्वीकायिक जीव लोक के एकदेशवर्ती होते हैं। से किं तं सुहम पुढविकाइया? - सुहुम पुढविकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य ॥१२॥ (संगहणीगाहा -सरीरोगाहणसंघयणसंठाण कसाय तह य हुँति सण्णाओ . लेसिदियसमुग्घाओ, सण्णी वेए य पज्जत्ति॥१॥ दिट्ठी दसणणाणे जोगुवओगे तहा किमाहारे। उववायठिई समुग्घाय चवणगइरागई चेव॥ २॥) भावार्थ - सूक्ष्म पृथ्वीकायिक क्या है? .. सूक्ष्म पृथ्वीकायिक दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा - पर्याप्तक और अपर्याप्तक। ... संग्रहणी गाथाओं का अर्थ - १. शरीर २. अवगाहना ३. संहनन ४. संस्थान ५. कषाय ६. संज्ञा ७. लेश्या ८. इन्द्रिय ९. समुद्घात १०. संज्ञी ११. वेद १२. पर्याप्ति १३. दृष्टि १४. दर्शन १५. ज्ञान १६. योग १७. उपयोग १८. आहार १९. उपपात २०. स्थिति २१. समुद्घात-समवहत असमवहत मरण २२. च्यवन और २३. गति आगति। सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों का इन २३ द्वारों से निरूपण किया जायेगा। विवेचन - सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव दो प्रकार के हैं - १. पर्याप्तक और २. अपर्याप्तक। स्वयोग्य पर्याप्तियों को जो पूर्ण करे वह पर्याप्तक जीव हैं और जो स्वयोग्य पर्याप्तियों को पूर्ण न करे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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