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________________ तृतीय प्रतिपत्ति- मनुष्य उद्देशक - एकोरुक द्वीप में उपद्रव आदि संध्या का पता न चलना, जक्खालित्ताइ - यक्षादीप्त - आकाश में अग्नि सहित पिशाच का रूप दिखना, धूमियाइ - धूमिका (धूंधर), महियाइ - महिका - जल कण युक्त धूंधर, रउग्घायाइ - रज उद्घातदिशाओं में धूल-भर जाना, चंदोवरागाइ - चन्द्रोपराग - चन्द्रग्रहण, चंदपरिवेसाइ - चन्द्रपरिवेश-चन्द्र के आसपास मंडल का होना, पडिचंदाइ प्रतिचन्द्र-दो चन्द्रों का दिखना, उदगमच्छाइ - उदकमत्स्य- इन्द्र धनुष का टुकड़ा, अमोहाइ- अमोघ - सूर्यास्त के बाद सूर्य बिम्ब से निकलने वाली श्याम आदि वर्ण वाली रेखा, कविहसियाइ - कपिहसित- आकाश में होने वाला भयंकर शब्द, पाणक्खयजणक्खयकुलक्खयधणक्खयवसणभूयमणारियाइ प्राणियों का क्षय, जन क्षय, कुल क्षय, धन क्षय, व्यसनकष्ट आदि अनार्य उत्पात । - - Jain Education International - भावार्थ- प्रश्न हे भगवन्! एकोरुक द्वीप में अनिष्ट सूचक दण्डाकार ग्रह समुदाय, मूसलाकार ग्रह समुदाय, ग्रहों के संचार की ध्वनि, दो ग्रहों का एक स्थान पर होना, ग्रहसंघाटक, ग्रहों का वक्री होना, मेघों का उत्पन्न होना, मेघों का वृक्षाकार होना, लाल-नीले बादलों का परिणमन, बादलों का नगर आदि रूप में परिणमन, गर्जना, बिजली चमकना, उल्कापात, दिग्दाह, निर्घात, धूलिवर्षा, यूपक, यक्षादीप्त धूंधर, जलकण युक्त धूंधर, दिशाओं का धूल से भर जाना, चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण, चन्द्रपरिवेषचन्द्र के आसपास मण्डल होना, सूर्य परिवेष, प्रतिचन्द्र-दो चन्द्रों का दिखना, प्रतिसूर्य, इन्द्रधनुष, उदकमत्स्य, अमोघ, कपिहसित, पूर्ववात, पश्चिमवात यावत् शुद्धवात, ग्रामदाह, नगरदाह यावत् सन्निवेशदाह, इनसे होने वाले प्राणियों का क्षय, जनक्षय, कुलक्षय, धनक्षय आदि दुःख और अनार्य उत्पात आदि वहां होते हैं क्या ? उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है यानी उक्त उपद्रव वहां नहीं होते हैं। अत्थि णं भंते! एगूरुयदीवे दीवे डिंबाइ वा डमराइ वा कलहाइ वा बोलाइ वा खाराइ वा वेराइ वा (महावेराइ वा ) विरुद्धरज्जाइ वा ? णो इट्टे समट्ठे, ववगयडिंबडमरकलहबोलखारवेरविरुद्धरज्जविवज्जिया णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! कंठिन शब्दार्थ- डिंबाइ - डिंब स्वदेश का विप्लव (उपद्रव), डमराइ डमर - अन्य देश द्वारा किया गया उपद्रव, कलहाइ - कलह वाक्युद्ध, बोलाइ - आर्तनाद-दुःखी जीवों का कलकलाहट, खाराइ - मात्सर्य - ईर्ष्याभाव, विरुद्धरज्जाइ - विरोधी राज्य । : भावार्थ प्रश्न हे भगवन्! एकोरुक द्वीप में स्वदेश का उपद्रव, अन्य देश द्वारा किया गया उपद्रव, कलह, आर्तनाद, मात्सर्य, वैर, विरोधी राज्य आदि हैं क्या ? ३३७ For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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