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________________ ३३८ जीवाजीवाभिगम सूत्र . उत्तर - हे आयुष्मन् श्रमण! ये सब वहां नहीं हैं। वे मनुष्य डिम-डमर-कलह-बोल-क्षार-वैर और विरुद्ध राज्य के उपद्रवों से रहित हैं। एकोरुक द्वीप में युद्ध रोग आदि अस्थि णं भंते! एगूरुयदीवे दीवे महाजुद्धाइ वा महासंगामाइ वा महासत्थपडणाइ वा महापुरिसपडणाइ वा महारुहिरपडणाइ वा णागवाणाइ वा खेणवाणाइ वा तामसवाणाइ वा दुब्भूइयाइ वा कुलरोगाइ वा गामरोगाइ वा णगररोगाइ वा मंडलरोगाइ वा सिरोवेयणाइ वा अच्छिवेयणाइ वा कण्णवेयणाइ वा णक्कवेयणाइ वा दंतवेयणाइ वा णहवेयणाड़ वा कासाइ वा सासाइ वा जराइ वा दाहाइ वा कच्छूइ वा खसराइ वा कुद्धाइ वा कुडाइ वा दगराइ वा अरिसाइ वा अजीरगाइ वा भगंदराइ वा इंदग्गहाइ वा खंदग्गहाइ वा कुमारग्गहाइ वा णागग्गहाइ वा जक्खग्गहाइ वा भूयग्गहाइ वा उव्वेयग्गहाइ वा धणुग्गहाइ वा एगाहियाइ वा बेयाहियाइ वा तेयाहियाइ वा चउत्थगाइ. वा हिययसूलाइ वा मत्थगसूलाइ वा पाससूलाइ वा कुच्छिसूलाइ वा जोणिसूलाइ वा गाममारीइ वा जाव सण्णिवेसमारीइ वा पाणक्खय जाव वसणभूयमणारियाइ वा? णो इणढे समढे, ववगयरोगायंका णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो!। कठिन शब्दार्थ - महासत्थपडणाइ - महाशस्त्रों का निपात, महापुरिसपडणाइ - महापुरुषों. चक्रवर्ती बलदेव वासुदेव के बाण, तामसवाणाइ - तामस बाण-अंधकार कर देने वाले बाण, दुब्भूइयाइ दुर्भूतिक-विभूति नष्ट हो जाय ऐसा अशिव, सिरोवेयणाइ - शिरोवेदना, कासाइ - खांसी, सासाइ - श्वास (दमा), जराइ - ज्वर, दाहाइ - दाह, कच्छूइ - खाज, खसराइ - खसरा, कुट्ठाइ - कुष्ट-कोढ, कुडाइ - कुडा-डमरुवात, दगोदराइ - जलोदर, अरिसाइ - अर्श (बवासीर), अजीरगाइ - अजीर्ण, : भगंदराइ - भगन्दर, इंदग्गहाइ - इन्द्रग्रह-इन्द्र के आवेश से होने वाला रोग, उव्वेयग्गहाइ - उद्वेगग्रह, एगाहियगाहाइ - एकाहिक ग्रह-एकान्तर ज्वर, हिययसूलाइ - हृदय शूल, गाममारीइ - ग्राममारी। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! एकोरुक द्वीप में महायुद्ध, महासंग्राम, महाशस्त्रों का निपात (गिरना) महापुरुषों के बाण, महारुधिर बाण नाग बाण, आकाश बाण, तामस बाण आदि हैं क्या? ___ उत्तर - हे आयुष्मन् श्रमण! ये सब वहां नहीं हैं। क्योंकि वहां के मनुष्य वैरानुबंध से रहित होते हैं अतः वहां महायुद्ध आदि नहीं होते हैं। प्रश्न - हे भगवन्! एकोरुक द्वीप में दुर्भूतिक (अशिव), कुलक्रमागत रोग, ग्राम रोहा, नगर रोग, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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