________________
२९६ ,
जीवाजीवाभिंगम सूत्र
एकोरुक आदि द्वीपों में रहे हुए मनुष्यों को एकोरुकीय आदि कहे जाते हैं जैसे भारत में रहने वाले को भारतीय कहा जाता है।
एकोरुक द्वीप का वर्णन कहिणं भंते! दाहिणिल्लाणं एगोरुय मणुस्साणं एगोरुयदीवे णामं दीवे पण्णत्ते?
गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरपुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ लवण समुह तिण्णि जोयणसयाई
ओगाहित्ता एत्थ णं दाहिणिल्लाणं एगोरुयमणुस्साणं एगूरुयहीवे णामं दीवे पण्णत्ते तिणि जोयणसयाइं आयामविक्खंभेणं णव एगूणपण्णजोयणसए किंचि विसेसेण परिक्खेवेणं एगाए पउमवरवेइयाए एगेणं च वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते।
सा णं पउमवरवेइया अट्ठ जोयणाई उड्डे उच्चत्तेणं पंच धणुसयाई विक्खंभेणं एगूरुयदीवं सव्वओ समंता परिक्खेवेणं पण्णत्ता। तीसे णं पउमवरवेइयाए अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा - वइरामया णिम्मा एवं वेइयावण्णओ जहा रायपसेणइए तहा भाणियव्वो॥१०९॥
कठिन शब्दार्थ - वासहरपव्वयस्स - वर्षधर पर्वत के, पउमवरवेइया - पद्मवरवेदिका, वण्णावासे - वर्णावास-वर्णन, वइरामया - वज्रमयी, णिम्मा - नेमिः-नींव।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! दक्षिण दिशा के एकोरुक मनुष्यों का एकोरुक नामक द्वीप कहां है? . ___ उत्तर - हे गौतम! जंबूद्वीप नामक द्वीप के मेरु पर्वत के दक्षिण में चुल्लहिमवंत वर्षधर पर्वत के उत्तरपूर्व के चरमान्त से लवण समुद्र में तीन सौ योजन जाने पर दक्षिण दिशा के एकोरुक मनुष्यों का एकोरुक नामक द्वीप कहा गया है। वह द्वीप तीन सौ योजन की लम्बाई चौड़ाई वाला तथा नौ सौ उनपचास योजन से कुछ अधिक परिधि वाला है। उसके चारों ओर एक पद्मवर वेदिका और एक वनखंड है। - वह पद्मवरवेदिका आठ योजन ऊंची, पांच सौ धनुष चौड़ाई वाली और एकोरुक द्वीप को चारों ओर से घेरे हुए हैं। उस पद्मवरवेदिका का वर्णन इस प्रकार है। यथा उसकी नींव वज्रमय है आदि वेदिका का वर्णन राजप्रश्नीय सूत्र के अनुसार कह देना चाहिये।
सा णं पउमवरवेइया एगेणं वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता। से णं
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org