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तृतीय प्रतिपत्ति- मनुष्य उद्देशक एकोरुक द्वीप का वर्णन
. वणसंडे देसूणाई दो जोयणाई चक्कवालविक्खंभेणं वेइयासमेणं परिक्खेवेणं पण्णत्ते, से णं वणसंडे किण्हे किण्होभासे एवं जहा रायपसेणइयवणसंडवण्णओ तहेव णिरवसेसं भाणियव्वं तणाण य वण्णगंधफासो सद्दो तणाणं वावीओ उप्पायपव्वया पुढविसिलापट्टगा य भाणियव्वा जाव तत्थ णं बहवे वाणमंतरा देवा य देवीओ य आसयंत जाव विहरंति ॥ ११० ॥
कठिन शब्दार्थ - चक्कवालविक्खंभेणं
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चक्रवाल विष्कम्भ - गोलाकार विस्तार वाला, वेइयासमेणं - वेदिका के समान, वावीओ- बावडियाँ, उप्पायपव्वया पुढविसिलापट्टगा पृथ्वीशिलापट्टक ।
उत्पात पर्वत,
भावार्थ - - वह पद्मवरवेदिका एक वनखण्ड से सब ओर से घिरी हुई है। वह वनखण्ड कुछ कम दो योजन गोलाकार विस्तार वाला और वेदिका के समान परिधि वाला है। वह वनखण्ड बहुत हरा और सघन होने से काला और काली कांति वाला प्रतीत होता है। इस प्रकार राजप्रश्नीय सूत्र के अनुसार वनखण्ड का सारा वर्णन समझ लेना चाहिये । तृणों का वर्ण, गंध, स्पर्श, शब्द तथा बावड़ियां, उत्पात पर्वत, पृथ्वीशिलापट्टक आदि का वर्णन भी कह देना चाहिये यावत् वहां बहुत से वाणव्यंतर देव और देवियां उठते बैठते हैं यावत् सुखानुभव करते हुए विचरण करते हैं।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में एकोरुक मनुष्यों का एकोरुक द्वीप कहां है ? इसका वर्णन किया गया है। एकोरुक द्वीप जंबूद्वीप नामक द्वीप के मेरु पर्वत के दक्षिण में तथा चुल्लहिमवंत पर्वत के ईशानकोण के चरमांत से लवणसमुद्र में तीन सौ योजन आगे जाने पर आता है। वह एकोरुक द्वीप तीन सौ योजन की लम्बाई चौड़ाई वाला और नौ सो उनपचास योजन से कुछ अधिक परिधि वाला कहा गया है। उसके चारों ओर स्थित पद्मवरवेदिका और वनखण्ड का वर्णन राजप्रश्नीय सूत्र के समान समझ लेना चाहिये ।
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एगोरुयदीवस्स णं दीवस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा एवं सयणिज्जे भाणियव्वे जाव पुढविसिलापट्टगंसि तत्थ णं बहवे एगोरुयदीवया मणुस्सा य मणुस्सीओ य आसयंति जाव विहरंति ।
गोरुयद्दीवे णं दीवे तत्थ तत्थ देसे देसे तर्हि तर्हि बहवे उद्दालका कोद्दालका कयमाला जयमाला णट्टमाला सिंगमाला संखमाला दंतमाला सेलमाला णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो! कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूला मूलमंतो कंदमंतो जाव बीयमंतो पत्तेहि य पुष्फेहि य अच्छण्णपडिच्छंण्णा सिरीए अईव अईव उवसोहेमाणा उवसोहेमाणा चिट्ठति ।
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