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जीवाजीवाभिगम सूत्र . मणुस्स उद्देसो- मनुष्य उद्देशक
(मनुष्य अधिकार) तिर्यंच जीवों का वर्णन करने के बाद सूत्रकार अब मनुष्य का कथन करते हैं जिसका प्रथम सूत्र इस प्रकार है -
मनुष्य के भेद से किं तं मणुस्सा? .
मणुस्सा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - संमुच्छिम मणुस्सा य गब्भवक्कंतिय मणुस्सा य॥१०५॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! मनुष्य कितने प्रकार के कहे गये हैं ? '
उत्तर - हे गौतम! मनुष्य दो प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - १. सम्मूर्छिम मनुष्य और २. गर्भव्युत्क्रांतिक (गर्भज) मनुष्य।
से किं तं समुच्छिम मणुस्सा? संमुच्छिम मणुस्सा एगागारा पण्णत्ता। कहि णं भंते! संमुच्छिम मणुस्सा संमुच्छंति?
गोयमा! अंतोमणुस्सखेत्ते जहा पण्णवणाए जाव से तं समुच्छिम मणुस्सा ॥१०६॥
कठिन शब्दार्थ - संमुच्छंति - संमूर्च्छन्ति-पैदा होते हैं, अंतोमणुस्सखेत्ते - अन्तर्मनुष्य क्षेत्रे-मनुष्य क्षेत्र में।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! सम्मूर्छिम मनुष्य कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर - हे गौतम! सम्मूर्छिम मनुष्य एक ही प्रकार के कहे गये हैं। प्रश्न - हे भगवन् ! सम्मूर्छिम मनुष्य कहाँ पैदा होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! सम्मूर्छिम मनुष्य, मनुष्य क्षेत्र में चौदह अशुचि स्थानों में उत्पन्न होते हैं इत्यादि सारा वर्णन प्रज्ञापना सूत्र के अनुसार कह देना चाहिये यावत् यह सम्मूर्छिम मनुष्यों का वर्णन हुआ।
विवेचन - सम्मूर्छिम मनुष्यों का विस्तृत वर्णन प्रज्ञापना सूत्र के प्रथम पद में एवं जीवाभिगम सूत्र की दूसरी प्रतिपत्ति में किया गया है अतः जिज्ञासुओं को वहां देख लेना चाहिये।
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