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________________ तृतीय प्रतिपत्ति - द्वितीय तिर्यंचयोनिक उद्देशक - अन्यतीर्थिक और क्रिया-प्ररूपणा २९३ करते हुए मिथ्या क्रिया भी करता है और मिथ्या क्रिया करते हुए सम्यक् क्रिया भी करता है। इस प्रकार एक जीव एक समय में दो क्रियाएं करता है, यथा - सम्यक् क्रिया और मिथ्या क्रिया।" प्रश्न - हे भंगवन्! उनका यह कथन कैसा है? उत्तर - हे गौतम! अन्यतीर्थिक जो ऐसा कहते हैं, ऐसा बोलते हैं, ऐसी प्रज्ञापना करते हैं और ऐसी प्ररूपणा करते हैं कि एक जीव एक समय में दो क्रियाएं करता है यथा - सम्यक् क्रिया और मिथ्या क्रिया। जो अन्यतीर्थिक ऐसा कहते हैं वे मिथ्या कथन करते हैं। हे गौतम! मैं ऐसा कहता हूँ यावत् प्ररूपणा करता हूँ कि एक जीव एक समय में एक ही क्रिया करता है यथा - सम्यक् क्रिया या मिथ्या क्रिया। जिस समय सम्यक् क्रिया करता है उस समय मिथ्या क्रिया नहीं करता और जिस समय मिथ्या क्रिया करता है उस समय सम्यक् क्रिया नहीं करता है। सम्यक् क्रिया करते हुए मिथ्या क्रिया नहीं करता और मिथ्या क्रिया करते हुए सम्यक् क्रिया नहीं करता। इस प्रकार एक जीव एक समय में एक ही क्रिया करता है वह इस प्रकार है - सम्यक् क्रिया अथवा मिथ्या क्रिया। ॥तिर्यंच योनिक का दूसरा उद्देशक समाप्त॥ विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में “एक जीव एक समय में दो क्रियाएं करता है" अन्यतीर्थिकों के इस मत का खण्डन किया गया है। सुंदर अध्यवंसाय वाली क्रिया सम्यक् क्रिया कहलाती है और असुन्दर अध्यवसाय वाली क्रिया मिथ्या क्रिया है। अन्यतीर्थिकों का मानना है कि 'जीव जिस समय सम्यक् क्रिया करता है उस समय मिथ्या क्रिया भी करता है और जिस समय मिथ्या क्रिया करता है उस समय सम्यक् क्रिया भी करता है।' किंतु प्रभु अन्यतीर्थिकों की इस मान्यता का खंडन करते हुए फरमाते हैं कि हे गौतम! एक जीव एक समय में एक ही क्रिया कर सकता है। यथा - सम्यक् क्रिया या मिथ्या क्रिया। वह इन दोनों क्रियाओं को एक साथ नहीं कर सकता क्योंकि इन दोनों में परस्पर परिहार रूप विरोध है। जिस समय सम्यक् क्रिया हो रही है उस समय मिथ्या क्रिया नहीं हो सकती और जिस समय मिथ्या क्रिया हो रही है उस समय सम्यक् क्रिया नहीं हो सकती। क्योंकि जीव का उभयकरण स्वभाव है ही नहीं। यदि जीव का उभयकरण स्वभाव माना जाय तो मिथ्यात्व की कभी निवृत्ति नहीं होगी और जीव कभी भी मोक्ष में नहीं जा सकेगा। किंतु ऐसा नहीं होता। अतएव यह सिद्ध होता है कि - जीव संम्यक् क्रिया करते समय मिथ्या क्रिया नहीं करता और मिथ्या क्रिया करते समय सम्यक् क्रिया नहीं करता। दोनों क्रियाएं एक साथ कभी संभव नहीं है अत: यह सिद्धान्त सही है कि जीव एक समय में एक ही क्रिया कर सकता है - सम्यक् क्रिया या मिथ्या क्रिया। . ॥तृतीय प्रतिपत्ति के तिर्यंचयोनिक अधिकार में दूसरा उद्देशक समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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