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________________ जीवाजीवाभिगम सूत्र अन्यतीर्थिक और क्रिया-प्ररूपणा अण्णउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति एवं भासेंति एवं पण्णवेंति एवं परूवेंतिएवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेइ, तं जहा सम्मत्त किरियं च मिच्छत्त किरियं च, जं समयं सम्मत्त किरियं पकरेइ तं समयं मिच्छत्तं किरियं पकरेइ, जं समयं मिच्छत्तकिरियं पकरेइ तं समयं सम्मत्तकिरियं पकरेइ, सम्मत्त किरिया पकरणयाए मिच्छत्तकिरियं पकरेइ मिच्छत्तं किरियापकरणयाएं सम्मत्तकिरियं पकरेड़, एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेइ, तं जहा सम्मत्त किरियं च मिच्छत्त किरियं च, से कहमेयं भंते! एवं ? = गोयमा! जण्णं ते अण्णउत्थिया एवमाइक्खंति एवं भासंति एवं पण्णवेंति एवं परूवेंति एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेड़ तहेव जाव सम्मत्त किरियं च मिच्छत्त किरियं च, जे ते एवमाहंसु तं णं मिच्छा, अहं पुण गोयमा ! - एवमाइक्खामि जाव परूवेमि एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एगं किरियं पकरेड़, तं जहा सम्मत्त किरियं वा मिच्छत्त किरियं वा, जं समयं सम्मत्तकिरियं पकरेइ णो तं समयं मिच्छत्तकिरियं पकरेइ, तं चेव जं समयं मिच्छत्तकिरियं पकरेइ णो तं समयं सम्मत्तकिरियं पकरेइ, सम्मत्त किरियापकरणयाए णो मिच्छत्तकिरियं पकरेइ मिच्छत्तकिरियापकरणयाए णो सम्मत्तकिरियं पकरेइ, एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एवं किरियं पकरेइ, तं जहा सम्मत्तकिरियं वा मिच्छत्तकिरियं वा ॥ १०४ ॥ ।। बीओ तिरिक्खजोणिय उद्देसो समत्तो ॥ २९२ - Jain Education International - कठिन शब्दार्थ - अण्णउत्थिया - अन्यतीर्थिक, एवं इस प्रकार, आइक्खंति कहते हैं, भासंति - बोलते हैं, पण्णवेंति प्रज्ञापना करते हैं, परूवेंति - प्ररूपणा करते हैं. सम्मत्तकिरियं सम्यक्क्रिया, मिच्छत्तकिरियं - मिथ्याक्रिया, पकरेइ - करता है, सम्मत्तकिरियापकरणयाए - सम्यक् क्रिया करते हुए । भावार्थ - हे भगवन् ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, इस प्रकार बोलते हैं, इस प्रकार प्रज्ञापना करते हैं, इस प्रकार प्ररूपणा करते हैं कि " एक जीव एक समय में दो क्रियाएं करता है । यथा सम्यक् क्रिया और मिथ्या क्रिया । जिस समय सम्यक् क्रिया करता है उसी समय मिथ्या क्रिया भी करता है और जिस समय मिथ्या क्रिया करता है उस समय सम्यक् क्रिया भी करता है। सम्यक् क्रिया - - - For Personal & Private Use Only - - - www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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