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________________ __ प्रथम प्रतिपत्ति - असंसार समापन्नक जीवाभिगम ............... बीच सात अन्तरों में तीर्थ 'का विच्छेद हो गया था। इस विच्छेद काल में जो जीव मोक्ष गये, वे अतीर्थसिद्ध कहलाते हैं। . ३. तीर्थंकर सिद्ध - तीर्थकर पद को प्राप्त करके मोक्ष जाने वाले तीर्थंकर सिद्ध कहलाते हैं। जैसे - भगवान् ऋषभदेव आदि। ४. अतीर्थकर सिद्ध - सामान्य केवली होकर मोक्ष जाने वाले जीव अतीर्थंकर सिद्ध कहलाते हैं। जैसे - गौतमस्वामी, पुण्डरीक आदि। ५. स्वयंबुद्ध सिद्ध - दूसरे के उपदेश के बिना स्वयमेव बोध प्राप्त कर मोक्ष जाने वाले स्वयंबुद्ध सिद्ध कहलाते हैं। जैसे - कपिल आदि। ६. प्रत्येकबुद्ध सिद्ध - जो किसी के उपदेश के बिना ही किसी एक पदार्थ को देख कर वैराग्य को प्राप्त होते हैं और दीक्षा धारण करके मोक्ष जाते हैं वे प्रत्येकबुद्ध सिद्ध कहलाते हैं। जैसे - करकण्डू, नमिराज ऋषि आदि। ___७. बुद्धबोधित सिद्ध - आचार्य आदि के उपदेश से बोध प्राप्त कर मोक्ष जाने वाले बुद्धबोधित : सिद्ध कहलाते हैं। जैसे - जम्बूस्वामी आदि। ८. स्त्रीलिङ्ग सिद्ध - स्त्रीलिंग से अर्थात् स्त्री की आकृति रहते हुए मोक्ष जाने वाले स्त्रीलिंग सिद्ध कहलाते हैं। जैसे चन्दनबाला आदि। ... ९. पुरुषलिंग सिद्ध - पुरुष की आकृति में रहते हुए मोक्ष में जाने वाले पुरुषलिंग सिद्ध कहलाते हैं। जैसे - गौतम स्वामी आदि। १०. नपुंसकलिंग सिद्ध - नपुंसक की आकृति में रहते हुए मोक्ष जाने वाले नपुंसकलिंग सिद्ध कहलाते हैं। जैसे गांगेय अनगार आदि। ११. स्वलिंग सिद्ध - साधुवेश (रजोहरण) मुखवस्त्रिका आदि में रहते हुए मोक्ष जाने वाले स्वलिंग सिद्ध कहलाते हैं। जैसे जैन साधु आदि। १२. अन्यलिंग सिद्ध - परिव्राजक आदि के वल्कल, गेरुएं वस्त्र आदि द्रव्य लिंग में रह कर मोक्ष जाने वाले अन्य लिंग सिद्ध कहलाते हैं। जैसे - वल्कलचीरी आदि। १३. गृहस्थलिंगसिद्ध - गृहस्थ के वेश में मोक्ष जाने वाले गृहस्थलिंग (गृहीलिङ्ग) सिद्ध कहलाते हैं। जैसे - मरुदेवी माता आदि। २४. एक सिद्ध - एक समय में एक मोक्ष जाने वाले जीव एक सिद्ध कहलाते हैं। जैसे - भगवान् महावीर स्वामी आदि। १५. अनेक सिद्ध - एक समय में अनेक (एक से अधिक) मोक्ष जाने वाले अनेक सिद्ध कहलाते हैं। जैसे - भगवान् ऋषभदेव आदि। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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