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________________ • जीवाजीवाभिगम सूत्र अपढमसमयसिद्धा दुसमयसिद्धा जाव अणंतसमयसिद्धा, से त्तं परंपरसिद्धासंसार समावण्णग जीवाभिगमे से त्तं असंसार समावण्णग जीवाभिगमे ॥ ७ ॥ १० कठिन शब्दार्थ - अणंतरसिद्धासंसारसमावण्णगं जीवाभिगमे अनन्तर सिद्ध असंसार समापन्नक जीवाभिगम, परंपरसिद्धासंसारसमावण्णग जीवाभिगमे परम्परसिद्ध असंसार समापन्नक जीवाभिगम । भावार्थ - असंसार समापन्नक जीवाभिगम क्या है ? असंसार समापन्नक जीवाभिगम दो प्रकार का कहा गया है। यथा समापन्नक जीवाभिगम और २. परम्परसिद्ध असंसार समापन्नक जीवाभिगम । अनन्तरसिद्ध असंसार समापन्नक जीवाभिगम क्या है ? अनन्तरसिद्ध असंसार समापन्नक जीवाभिगम पन्द्रह प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है तीर्थसिद्ध यावत् अनेक सिद्ध । यह अनन्तरसिद्ध असंसार समापन्नक जीवाभिगम का वर्णन हुआ।. परम्परसिद्ध असंसार समापन्नक जीवाभिगम क्या है ? परम्परसिद्ध असंसार समापन्नक जीवाभिगम अनेक प्रकार का कहा गया है। यथा अप्रथमसमय सिद्ध, द्वितीय समय सिद्ध यावत् अनन्त समय सिद्ध । यह परम्परसिद्ध असंसार समापन्नक जीवाभिगम का वर्णन हुआ। यह असंसार समापन्नक जीवाभिगम का निरूपण पूर्ण हुआ । विवेचन असंसार समापन्नक यानी मुक्त जीव दो प्रकार के हैं - १. अनन्तर सिद्ध जिनके सिद्धत्व में समय का अन्तर नहीं है अर्थात् सिद्धत्व के प्रथम समय में विद्यमान सिद्ध अनन्तरसिद्ध हैं। २. परम्परसिद्ध - जिन्हें सिद्ध हुए दो तीन यावत् अनन्त समय हो चुका है वे परम्परसिद्ध कहलाते हैं । अनन्तरसिद्धों के पन्द्रह भेद इस प्रकार हैं १. तीर्थसिद्ध २. अतीर्थसिद्ध ३. तीर्थंकरसिद्ध ४. अतीर्थंकरसिद्ध ५. स्वयंबुद्धसिद्ध ६. प्रत्येकबुद्धसिद्ध ७ बुद्धबोधितसिद्ध ८. स्त्रीलिंगसिद्ध ९. पुरुषलिंगसिद्ध १०. नपुंसकलिंगसिद्ध ११. स्वलिंगसिद्ध १२. अन्यलिंगसिद्ध १३. गृहस्थलिंगसिद्ध १४. एकसिद्ध और १५. अनेक सिद्ध । - - Jain Education International - १. अनन्तर सिद्ध असंसार १. तीर्थ सिद्ध - जिससे समुद्र तिरा जाय वह तीर्थ कहलाता है अर्थात् जीवाजीवादि पदार्थों की प्ररूपणा करने वाले तीर्थंकर भगवान् के वचन और उन वचनों को धारण करने वाला चतुर्विध संघ (साधु साध्वी श्रावक श्राविका ) तथा प्रथम गणधर तीर्थ कहलाते हैं। इस प्रकार के तीर्थ की मौजूदगी में जो सिद्ध होते हैं वे तीर्थसिद्ध कहलाते हैं। जैसे - गौतम स्वामी आदि । For Personal & Private Use Only - २. अतीर्थ सिद्ध तीर्थ की स्थापना होने से पहले अथवा बीच में तीर्थ का विच्छेद होने पर जो सिद्ध होते हैं त्रे अतीर्थसिद्ध कहलाते हैं । जैसे - मरुदेवी माता आदि । मरुदेवी माता तीर्थ की स्थाप होने से पहले ही मोक्ष गई थी। भगवान् सुविधिनाथ से लेकर भगवान् शांतिनाथ तक आठ तीर्थंकरों के www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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