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जीवाजीवाभिगम सूत्र
गोयमा! जे पोग्गला अणिट्ठा जाव अमणामा ते तेसिं ऊसासत्ताए परिणमंति एवं जाव अहेसत्तमाए, एवं आहारस्स वि सत्तसु वि॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों के श्वासोच्छ्वास के रूप में कैसे पुद्गल परिणत होते हैं?
उत्तर - हे गौतम! जो पुद्गल अनिष्ट यावत् अमनाम होते हैं वे नैरयिकों के श्वासोच्छ्वास के रूप में परिणत होते हैं। इसी प्रकार अधःसप्तम पृथ्वी तक के नैरयिकों के विषय में समझना चाहिये। जो पुद्गल अनिष्ट यावत् अमनाम होते हैं वे नैरयिकों के आहार रूप में परिणत होते हैं। इसी प्रकार सप्तम नरक पृथ्वी तक के नैरयिकों का कथन करना चाहिये।
- विवेचन - सभी अशुभ पुद्गल नैरयिक जीवों के श्वासोच्छ्वास एवं आहार के रूप में परिणत होते हैं।
नैरयिकों में लेश्याएँ इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयाणं कइ लेसाओ पण्णत्ताओ? . ।
गोयमा! एक्का काउलेसा पण्णत्ता, एवं सक्करप्पभाएऽवि वालुयप्पभाए पुच्छा, गोयमा! दो लेसाओ पण्णत्ताओ तं जहा - णीललेसा य काउलेसा य, तत्थ जे काउलेसा ते बहुतरा जे णीललेसा पण्णत्ता ते थोवा, पंकप्पभाए पुच्छा, एक्का णीललेसा पण्णत्ता, धूमप्पभाए पुच्छा, गोयमा! दो लेस्साओ पण्णत्ताओ तं जहा - किण्हलेस्सा य णीललेस्सा य, ते बहुतरगा जे णीललेस्सा ते थोवतरगा जे किण्हलेसा, तमाए पुच्छा, गोयमा! एक्का किण्हलेस्सा, अहेसत्तमाए एक्का परम किण्हलेस्सा॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों में कितनी लेश्याएं कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों में एक कापोत लेश्या कही गई है। इसी प्रकार शर्कराप्रभा में भी कापोत लेश्या है। बालुकाप्रभा संबंधी प्रश्न ? हे गौतम! बालुकाप्रभा में दो लेश्याएं कही गई है। यथा - नीललेश्या और कापोत लेश्या। उनमें कापोत लेश्या वाले अधिक हैं और नीललेश्या वाले थोड़े हैं। पंकप्रभा संबंधी प्रश्न ? पंकप्रभा में एक नील लेश्या कही गई है। धूमप्रभा विषयक प्रश्न ? हे गौतम! धूमप्रभा में दो लेश्याएं कही गई है। यथा - कृष्ण लेश्या और नील लेश्या। उनमें जो नीललेश्या वाले हैं वे अधिक हैं और जो कृष्ण लेश्या वाले हैं वे थोड़े हैं। तमःप्रभा संबंधी पृच्छा? हे गौतम! तमःप्रभा में एक कृष्ण लेश्या है। अधःसप्तम पृथ्वी में एक परम कृष्ण लेश्या है।
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