________________
तृतीय प्रतिपत्ति - प्रथम नैरयिक उद्देशक - घनोदधि आदि वलयों की मोटाई
२०७
' भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के साढे चार योजन बाहल्य वाले और प्रतर आदि रूप में विभक्त घनवात वलय में वर्ण से काले आदि द्रव्य हैं क्या? ..
उत्तर - हाँ, गौतम! हैं। इसी प्रकार जिसका जितना बाहल्य है उतना कह कर सातवीं पृथ्वी तक कह देना चाहिये। इसी प्रकार तनुवात वलय के विषय में भी अपने अपने बाहल्य कह कर अध:सप्तम पृथ्वी तक कह देना चाहिये।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए घणोदहिवलए किं संठिए पण्णत्ते?
गोयमा! वट्टे वलयागारसंठाणसंठिए पण्णत्ते जे णं इमं रयणप्पभं पुढविं सव्वओ समंता संपरिक्खिवित्ताणं चिट्ठइ। एवं जाव अहेसत्तमाए पुढवी घणोदहिवलए, णवरं अप्पणप्पणं पुढवि संपरिक्खिवित्ताणं चिट्ठइ।
इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए घणवायवलए किं संठिए पण्णत्ते?
गोयमा! वट्टे वलयागारे तहेव जाव जेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घणोदहिवलयं सव्वओ समंता संपरिक्खिवित्ताणं चिट्ठइ एवं जाव अहेसत्तमाए घणवायवलए।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तणुवायवलए किं संठिए पण्णत्ते?
गोयमा! वट्टे वलयागार संठाण संठिए जाव जेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घणवायवलयं सव्वओ समंता संपरिक्खिवित्ताणं चिट्ठइ, एवं जाव अहेसत्तमाए तणुवायवलए।
इमाणं भंते! रयणप्पभा पुढवी केवइयं आयामविक्खंभेणं पण्णत्ता?
गोयमा! असंखेज्जाइं जोयणसहस्साई आयामविक्खंभेणं असंखेम्जाइं जोयणसहस्साई परिक्खेवेणं पण्णत्ता, एवं जाव अहेसत्तमा।. .
इमा णं भंते! रयणप्पभा पुढवीए अंते ये मझे य सव्वत्थ समा बाहल्लेणं पण्णता? ___ हंता गोयमा! इमा णं रयणप्पभाए पतनीए अंते य मज्झे य सव्वत्थ समा बाहल्लेणं, एवं जाव अहेसत्तमा॥
कठिन शब्दार्थ - बट्टे - वृत, वलयागारसंठाणसंठिए - वलयाकार संस्थान संस्थित, संपरिक्खिवित्ताणं - घेर कर, आयामविक्खंभेणं - आयाम विष्कंभ-लम्बाई चौडाई, परिक्खेवेणं - परिधि-घेराव।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org