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२०८.
जीवाजीवाभिगम सूत्र
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के घनोदधि वलय का कैसा आकार कहा गया है?
उत्तर - हे गौतम! रत्नप्रभा पृथ्वी का घनोदधिवलय वर्तुल और वलयाकार कहा गया है क्योंकि यह इस रत्नप्रभा पृथ्वी को चारों ओर से घेर कर रहा हुआ है। इसी प्रकार सातों नरक पृथ्वियों के घनोदधि वलय का संस्थान (आकार) समझना चाहिये। विशेषता यह है कि वे सब अपनी अपनी पृथ्वी को घेर कर रहे हुए हैं। ___ प्रश्न - हे भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के घनवात वलय का आकार कैसा कहा गया है ?
उत्तर - हे गौतम! रत्नप्रभा पृथ्वी का घनवात वलय वर्तुल और वलयाकार कहा गया है क्योंकि वह इस रत्नप्रभा पृथ्वी के घनोदधि वलय को चारों ओर से घेर कर रहा हुआ है। इसी तरह सातों पृथ्वियों के घनवात वलय का आकार समझना चाहिये।
प्रश्न - हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तनुवात वलय का आकार कैसा कहा गया है ?
उत्तर - हे गौतम! रत्नप्रभा पृथ्वी का तनुवात वलय वर्तुल और वलयाकार कहा गया है क्योंकि वह घनवात वलय को चारों ओर से घेर कर रहा हुआ है। इसी प्रकार अधःसप्तम पृथ्वी तक के तनुवातं वलय का आकार समझना चाहिये।
प्रश्न - हे भगवन्! यह रत्नप्रभा पृथ्वी कितनी लम्बी चौड़ी कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! यह रत्नप्रभा पृथ्वी असंख्यात हजार योजन लम्बी और चौड़ी तथा असंख्यात हजार योजन की परिधि वाली कही गई है। इसी प्रकार अधःसप्तम पृथ्वी तक कह देना चाहिये।
प्रश्न - हे भगवन्! क्या यह रत्नप्रभा पृथ्वी अन्त में और मध्य में सर्वत्र समान मोटाई वाली कही गई है?
उत्तर - हाँ गौतम! यह रत्नप्रभा पृथ्वी अन्त में, मध्य में सर्वत्र समान मोटाई वाली कही गई है। इसी प्रकार सातवीं पृथ्वी तक कह देना चाहिये।
- विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में सात नरक पृथ्वियों के घनोदधि, घनवात और तनुवात वलयों के संस्थानों, उनकी लम्बाई, चौड़ाई और परिधि आदि का वर्णन किया गया है। . रत्नप्रभा के विस्तार की अपेक्षा शर्कराप्रभा का विस्तार एक रज्जु झाझेरा मानना चाहिये क्योंकि रत्नप्रभा का पृथ्वी पिण्ड एक लाख अस्सी हजार योजन का है। त्रस नाल एक रज्जु की है।
रत्नप्रभा का पृथ्वीपिण्ड प्रारम्भ में तो एक रज्जु का है फिर क्रमश: बढ़ता गया है अतः एक लाख अस्सी हजार योजन जाने तक विस्तार एक रज्जु झाझेरी हो जाता है तथा दूसरी नरक का पृथ्वी पिण्ड दो रज्जु से कुछ न्यून मानने से विशेषाधिक हो जाता है। इस अपेक्षा से एक-एक नरक के पृथ्वी पिण्ड से आगे आगे की नरक के पृथ्वी पिण्ड विशेषाधिक होते हैं।
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