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________________ द्वितीय प्रतिपत्ति - नव विध अल्पबहत्व १८३ अंतरदीवियाणं मणुस्सपुरिसाणं कम्मभूमियाणं अकम्मभूमियाणं अंतरदीवयाणं मणुस्स णपुंसगाणं कम्मभूयगाणं अकम्मभूयगाणं अंतरदीवगाणं देवित्थीणं भवणवासिणीणं वाणमंतरीणं जोइसिणीणं वेमाणिणीणं देवपुरिसाणं भवणवासीणं वाणमंतराणं जोइसियाणं वेमाणियाणं सोहम्मगाणं जाव गेवेज्जगाणं अणुत्तरोववाइयाणं णेरइयणपुंसगाणं रयणप्पभापुढवि जेरइय णपुंसगाणं जाव अहेसत्तमपुढवि णेरइय णपुंसगाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! अंतरदीव अकम्मभूमगमणुस्सित्थीओ मणुस्सपुरिसा य एएणं दो वि तुल्ला सव्वत्थोवा, देवकुरुउत्तरकुरु अकम्मभूमग मणुस्सइत्थीओ पुरिसा य एए णं दो वि तुल्ला संखेज्जगुणा एवं हरिवास रम्मगवास अकम्मभूमग मणुस्सित्थीओ मणुस्सपुरिसा य एएणं दो वि तुल्ला संखेज्जगुणा एवं हेमवय हेरण्णवय अकम्मभूमग मणुस्सित्थीओ मणुस्स पुरिसा य एएणं दो वि तुल्ला संखेज्जगुणा, भरहेरवयकम्मभूमग मणुस्सपुरिसा दो वि संखेज्जगुणा भरहेरवय कम्मभूमिगमणुस्सित्थीओ दो वि संखेज्जगुणाओ पुव्वविदेह अवरविदेह कम्मभूमग मणुस्स पुरिसा दो वि संखेज्जगुणा, पुव्वविदेह अवरविदेह कम्मभूमग मणुस्सित्थियाओ दो वि संखेज्जगुणाओ अणुत्तरोववाइय देवपुरिसा असंखेज्जगुणा, उवरिम गेवेज्ज देवपुरिसा संखेज्जगुणा जाव आणए कप्पे देवपुरिसा संखेज्जगुणा अहेसत्तमाए पुढवीए णेरइय णपुंसगा असंखेज्जगुणा छट्ठीए पुढवीएणेरइयणपुंसगा असंखेज्जगुणा सहस्सारे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा, महासुक्के कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा पंचमाए पुढवीए णेरइय णपुंसगा असंखेग्जमुणा, लंतए कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा चउत्थीए पुढवीए णेरइय णपुंसगा असंखेज्जगुणा बंभलोए कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा तच्चाए पुढवीए. णेरइयणपुंसगा असंखेज्जगुणा माहिंदे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा, सणंकुमारे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा दोच्चाए पुढवीए णेरइयणपुंसगा असंखेज्जगुणा, अंतरदीवग अकम्मभूमगमणुस्सणपुंसगा असंखेज्जगुणा, देवकुरुउत्तरकुरु अकम्मभूमगमणुस्सणपुंसगा दोवि संखेज्जगुणा एवं जाव विदेहत्ति, ईसाणे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा, ईसाणकप्पे देवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ सोहम्मे कप्पे देवपुरिसा संखेज्जगुणा, सोहम्मे कप्पे देवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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