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________________ १८४ जीवाजीवाभिगम सूत्र भवणवासिदेवपुरिसा असंखेज्जगुणा, भवणवासिदेवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए रइयणपुंसगा असंखेज्जगुणा, खहयरतिरिक्खजोणियपुरिसा संखेज्जगुणा खहयरतिरिक्खजोणित्थियाओ संखेज्जगुणाओ थलयरतिरिक्खजोणियपुरिसा संखेज्जगुणा, थलयरतिरिक्खजोणित्थियाओ संखेज्जगुणाओ, जलयरतिरिक्खजेणिय पुरिसा संखेज्जगुणा जलयरतिरिक्खजोणित्थियाओ संखेज्जगुणाओ वाणमंतरदेवपुरिसा संखेज्जगुणां वाणमंतर देवित्थियाओ संखेजगुणाओ जोइसियदेवपुरिसा संखेज्जगुणा जोइसियदेवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ खहयर पंचेंदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा संखेज्जगुणा, थलयरणपुंसगा संखेम्जगुणा जलयरणपुंसगा संखेज्जगुणा, चउरिदियणपुंसगा विसेसाहिया तेइंदिय णपुंसगा विसेसाहिया, बेइंदिय णपुंसगा विसेसाहिया, तेउक्काइयएगिदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा असंखेज्जगुणा, पुढवीकाइयएगिंदिय तिरिक्खजोणियणपुंसगा विसेसाहिया, आउक्काइयएगिंदिय तिरिक्खजोणियणपुंसगा विसेसाहिया, वाउक्काइयएगिंदिय तिरिक्खोणियणपुंसगा विसेसाहिया वणस्सइकाइय एगिदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा अणंतगुणा॥१२॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इन तिर्यंचयोनिक स्त्रियों-जलचरी, स्थलचरी और खेचरियों में, तिर्यंचयोनिक पुरुषों-जलचर, स्थलचर, खेचरों में, तिर्यंचयोनिक नपुंसकों-एकेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक नपुंसकों, पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यंच नपुंसकों, अप्कायिक एकेन्द्रिय तिर्यंच नपुंसकों यावत् वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय तिर्यंच नपुंसकों में, बेइन्द्रिय तिर्यंच नपुंसकों में, तेइन्द्रिय तिर्यंच नपुंसकों में, चउरिन्द्रिय तिर्यंच नपुंसकों में, पंचेन्द्रिय तिर्यंच नपुंसकों-जलचर, स्थलचर, खेचर नपुंसकों में, मनुष्य स्त्रियों-कर्मभूमिज, अकर्मभूमिज, अन्तरद्वीपज स्त्रियों में, मनुष्य पुरुषों-कर्मभूमिज, अकर्मभूमिज, अन्तरद्वीपज पुरुषों में, मनुष्य नपुंसकों-कर्मभूमिज, अकर्मभूमिज, अन्तरद्वीपज नपुंसकों में देवस्त्रियोंभवनवासी देवस्त्रियों, वाणव्यंतरियों, ज्योतिषी देवस्त्रियों में, वैमानिक देवियों में, देवपुरुषों में, भवनवासी वाणव्यंतर ज्योतिषी वैमानिक देवों में सौधर्मकल्प यावत् ग्रैवेयकों में, अनुत्तरौपपातिक देवों में, नैरयिक नपुंसकों-रत्नप्रभा पृथ्वी नैरयिक नपुंसकों यावत् अधःसप्तम पृथ्वी नैरयिक नपुंसकों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं? उत्तर - हे गौतम! अन्तरद्वीपज, अकर्मभूमिज मनुष्य स्त्रियाँ और मनुष्य पुरुष-ये दोनों परस्पर तुल्य और सबसे थोड़े हैं, उनसे देवकुरु उत्तरकुरु अकर्मभूमिज मनुष्य स्त्रियाँ और पुरुष परस्पर तुल्य और संख्यातगुणा हैं, उनसे अकर्मभूमिज हरिवर्ष रम्यकवर्ष की मनुष्यस्त्रियां और मनुष्य पुरुष दोनों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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