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________________ १८२ जीवाजीवाभिगम सूत्र देवपुरिसा असंखेज्जगुणा, वाणमंतर देवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ, जोइसिय देवपुरिसा संखेज्जगुणा, जोइसिय देवित्थियाओ संखेज्जगुणा। . भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इन देवस्त्रियों में, भवनवासी देवियों में, वाणव्यंतर देवियों में, ज्योतिषी देवियों में, वैमानिक देवियों में, देवपुरुषों में भवनवासी यावत् वैमानिकों में, सौधर्मकल्प यावत् ग्रैवेयक देवों में अनुत्तरौपपातिक देवों में, नैरयिक नपुंसकों में-रत्नप्रभा नैरयिक नपुंसकों यावत् अधःसप्तम पृथ्वी नैरयिक नपुंसकों में कौन किससे कम, अधिक, तुल्य या विशेषाधिक हैं? . . . उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े अनुत्तरौपपातिक देवपुरुष हैं, उनसे उपरिम ग्रैवेयक देवपुरुष संख्यातगुणा इसी प्रकार यावत् आनत कल्प के देवपुरुष संख्यातगुणा, उनसे अधःसप्तम पृथ्वी के नैरयिक नपुंसक असंख्यातगुणा, उनसे छठी पृथ्वी के नैरयिक नपुंसक असंख्यातगुणा, उनसे सहस्रारकल्प के देवपुरुष असंख्यातगुणा, उनसे महाशुक्र कल्प के देवपुरुष असंख्यातगुणा, उनसे पांचवीं पृथ्वी के नैरयिक नपुंसक असंख्यातगुणा, उनसे लान्तक कल्प के देव असंख्यातगुणा, उनसे चौथी पृथ्वी के नैरयिक नपुंसक असंख्यातगुणा, उनसे ब्रह्मलोक कल्प के देवपुरुष असंख्यातगुणा, उनसे तीसरी पृथ्वी के नैरयिक नपुंसक असंख्यातगुणा, उनसे माहेन्द्रकल्प के देवपुरुष असंख्यातगुणा, उनसे सनत्कुमार कल्प के देवपुरुष असंख्यातगुणा, उनसे दूसरी पृथ्वी के नैरयिक नपुंसक असंख्यातगुणा, उनसे' ईशानकल्प के देवपुरुष असंख्यातगुणा, उनसे ईशानकल्प की देवस्त्रियां संख्यातगुणी, उनसे सौधर्म कल्प के देवपुरुष संख्यातगुणा, उनसे सौधर्म कल्प की देवस्त्रियां संख्यातगुणी, उनसे भवनवासी देवपुरुष असंख्यातगुणा, उनसे भवनवासी देवस्त्रियां संख्यातगुणी, उनसे रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक नपुंसक असंख्यातगुणा, उनसे वाणव्यंतर देवपुरुष असंख्यातगुणा, उनसे वाणव्यंतर देवस्त्रियां संख्यातगुणी, उनसे ज्योतिषी देवपुरुष संख्यातगुणा, उनसे ज्योतिषी देवस्त्रियां संख्यातगुणी हैं। विवेचन - यह आठवां अल्पबहुत्व विशेष भेदों की अपेक्षा से देव स्त्री, पुरुष और नैरयिक नपुंसकों के विषय में कहा गया है। एयासि णं भंते! तिरिक्खजोणित्थीणं जलयरीणं थलयरीणं खहयरीणं तिरिक्खजोणिय पुरिसाणं जलयराणं थलयराणं खहयराणं तिरिक्खजोणिय णपुंसगाणं एगिदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसगाणं पुढविकाइय एगिदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसगाणं, आउक्काइय एगिंदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसगाणं जाव वणस्सइकाइय एगिंदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसगाणं बेइंदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसगाणं तेइंदियतिरिक्खजोणिय णपुंसगाणं चउरिदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसगाणं पंचेंदियतिरिक्खजोणिय णपुंसगाणं जलयराणं थलयराणं-खहयराणं मणुस्सित्थीणं कम्मभूमिगाणं अकम्मभूमिगाणं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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