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________________ द्वितीय प्रतिपत्ति - नव विध अल्पबहुत्व १८१ HHHHEMENT संख्यातगुणा, उनसे हैमवत हैरण्यवत अकर्मभूमिज मनुष्य स्त्रियां और मनुष्य पुरुष परस्पर तुल्य और संख्यातगुणा, उनसे भरत ऐरवत कर्मभूमिज मनुष्य पुरुष दोनों संख्यातगुणा, उनसे भरत ऐरवत कर्मभूमिज मनुष्य स्त्रियां दोनों संख्यातगुणी, उनसे पूर्वविदेह पश्चिमविदेह कर्मभूमिज मनुष्य पुरुष दोनों संख्यातगुणा, उनसे पूर्वविदेह पश्चिमविदेह कर्मभूमिज मनुष्य स्त्रियाँ दोनों संख्यातगुणी, उनसे अंतरद्वीपज मनुष्य नपुंसक असंख्यातगुणा, उनसे देवकुरु उत्तरकुरु अकर्मभूमिज मनुष्य नपुंसक दोनों संख्यातगुणा इसी तरह यावत् पूर्वविदेह कर्मभूमिज मनुष्य नपुंसक, पश्चिमविदेह कर्मभूमिज मनुष्य नपुंसक दोनों संख्यातगुणा हैं। विवेचन - यह सातवां अल्पबहुत्व मनुष्य स्त्री, मनुष्य पुरुष और मनुष्य नपुंसक के विशेष भेदों की अपेक्षा कहा गया है। एएसि णं भंते! देवित्थीणं भवणवासिणीणं वाणमंतरिणीणं जोइसिंणीणं वेमाणिणीणं, देवपुरिसाणं भवणवासीणं जाव वेमाणियाणं सोहम्मगाणं जाव गेवेजगाणं अणुत्तरोत्रवाइयाणं, णेरइयणपुंसगाणं रयणप्पभापुढविणेरड्यणपुंसगाणं जाव अहेसत्तमपुढवि णेरइयणपुंसगाणं कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? .. गोयमा! सव्वत्थोवा अणुत्तरोववाइय देवपुरिसा, उवरिमगेवेज देवपुरिसा संखेजगुणा, तं चेव जाव आणए कप्पे देवपुरिसा संखेज्जगुणा, अहेसत्तमाए पुढवीए णेरड्यणपुंसगा असंखेजगुणा, छट्ठीए पुढवीए णेरइयणपुंसगा असंखेजगुणा, सहस्सारे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा, महासुक्के कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा, पंचमाए पुढवीए णेरड्यणपुंसगा असंखेजगुणा, लंतए कप्पे देवपुरिसा असंखेजगुणा, चउत्थीए पुढवीए णेरइयणपुंसगा असंखेग्जगुणा, बंभलोए कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा, तच्चाए पुढवीए णेरइयणपुंसगा असंखेज्जगुणा, माहिंदे कप्पे देवपुरिसा असंखेजगुणा, सणंकुमार कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा, दोच्चाए पुढवीए रइयणपुंसगा असंखेज्जगुणा, ईसाणे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा, ईसाणे कप्पे देवित्थियाओ संखेजगुणाओ, सोहम्मे कप्पे देवपुरिसा संखेग्जगुणा, सोहम्मे कप्पे देवित्थियाओ संखेजगुणाओ, भवणवासि देवपुरिसा असंखेज्जगुणा, भवणवासिदेवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ, इमीसे रयणप्पभापुढवीए णेरइयणपुंसगा असंखेजगुणा, वाणमंतर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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