________________
१८०
।
- जीवाजीवाभिगम सूत्र
तिर्यंच नपुंसक असंख्यातगुणा, उनसे पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यंच नपुंसक विशेषाधिक, उनसे अप्कायिक एकेन्द्रिय तिर्यंच नपुंसक विशेषाधिक, उनसे वायुकायिक एकेन्द्रिय तिर्यंच नपुंसक विशेषाधिक, उनसे वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय तिर्यंच नपुंसक अनन्तगुणा हैं।
विवेचन - यह छठा अल्पबहुत्व तिर्यंचयोनिक स्त्री, पुरुष और नपुंसक के विशेष भेदों की अपेक्षा कहा गया है।
एएसि णं भंते! मणुस्सित्थीणं कम्मभूमियाणं, अकम्मभूमियाणं अंतरदीवियाणं, मणुस्स पुरिसाणं कम्मभूमगाणं अकम्मभूमगाणं अंतरदीवगाणं, मणुस्स णपुंसगाणं कम्मभूमगाणं अकम्मभूमगाणं अंतरदीवगाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? | ___ गोयमा! अंतरदीविया मणुस्सित्थियाओ मणुस्स पुरिसा य एएणं दो वि तुल्ला सव्वत्थोवा देवकुरु उत्तरकुरु अकम्मभूमग मणुस्सित्थियाओ मणुस्स पुरिसा य एए णं दोण्णि वि तुल्ला संखेज्जगुणा हरिवासरम्मगवास अकम्मभूमग मणुस्सित्थियाओं मणुस्सपुरिसा य एए णं दोण्णि वि तुल्ला संखेज्जगुणा, हेमवय हेरण्णवय अकम्मभूमग मणुस्सित्थियाओ मणुस्स पुरिसा य दो वि तुल्ला संखेज्जगुणा, भरहेरवयकम्मभूमग मणुस्स पुरिसा दो वि संखेजगुणा भरहेरवय कम्मभूमग मणुस्सित्थियाओ दो वि संखेज्जगुणाओ, पुव्वविदेह अवरविदेह कम्मभूमग मणुस्स पुरिसा दो वि संखेज्जगुणा, पुव्वविदेह अवरविदेह अवरविदेह कम्मभूमग मणुस्सित्थियाओ दो वि संखेजगुणाओ, अंतरदीवग मणुस्स णपुंसगा असंखेज्जगुणा, देवकुरु उत्तरकुरु अकम्मभूमग मणुस्स णपुंसगा दो वि संखेज्जगुणा तहेव चेव जाव पुव्वविदेह अवरविदेह कम्मभूमग मणुस्स णपुंसगा दो वि संखेजगुणा॥ . भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! इन मनुष्य स्त्रियों-कर्मभूमिज स्त्रियों, अकर्मभूमिज स्त्रियों और अंतरद्वीपज स्त्रियों में, मनुष्य पुरुषों-कर्मभूमिज पुरुषों, अकर्मभूमिज पुरुषों और अंतरद्वीपज पुरुषों में, मनुष्य नपुंसकों-कर्मभूमिज नपुंसकों, अकर्मभूमिज नपुंसकों और अंतरद्वीपज नपुंसकों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ?
उत्तर - हे गौतम! अन्तरद्वीपज मनुष्य स्त्रियाँ और मनुष्य पुरुष ये दोनों परस्पर तुल्य और सबसे थोड़े, उनसे देवकुरु उत्तरकुरु अकर्मभूमिज मनुष्य स्त्रियां और मनुष्य पुरुष परस्पर तुल्य और संख्यातगुणा, उनसे हरिवर्ष रम्यकवर्ष अकर्मभूमिज मनुष्य स्त्रियां और मनुष्य पुरुष परस्पर तुल्य और
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org