SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 189
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवाजीवाभिगम सूत्र उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े खेचर तिर्यंच योनिक नपुंसक, उनसे स्थलचर तिर्यंचयोनिक नपुंसक संख्यातगुणा, उनसे जलचर तिर्यंचयोनिक नपुंसक संख्यातगुणा, उनसे चउरिन्द्रिय तिर्यंचयोनिक नपुंसक विशेषाधिक, उनसे तेइन्द्रिय तिर्यंचयोनिक नपुंसक विशेषाधिक, उनसे बेइन्द्रिय तिर्यंचयोनिक नपुंसक विशेषाधिक, उनसे तेजस्कायिक एकेन्द्रिय तिर्यंच नपुंसक असंख्यातगुणा, उनसे पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यंच नपुंसक विशेषाधिक, उनसे अपकायिक, एकेन्द्रिय तिर्यंच नपुंसक विशेषाधिक, उनसे वायुकायिक एकेन्द्रिय तिर्यंच नपुसंक विशेषाधिक और उनसे वनस्पतिकाचिक एकेन्द्रिय तिर्यंच नपुंसक अनन्तगुणा हैं। १७२ विवेचन - इस तीसरे अल्पबहुत्व में तिर्यंच नपुंसकों के भेदों की अपेक्षा अल्पबहुत्व का कथन किया गया है जो इस प्रकार है - **REEEEEEEE सबसे थोड़े खेचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय नपुंसक हैं क्योंकि वे प्रतर के असंख्यातवें भागवर्ती असंख्यात श्रेणीगत आकाश प्रदेश राशि प्रमाण हैं। उनसे स्थलचर तिर्यंच नपुंसक संख्यातगुणा हैं क्योंकि वे बृहत्तर प्रतर के असंख्यातवें भागवर्ती असंख्यात श्रेणीगत आकाश प्रदेश राशि प्रमाण हैं। उनसे जलचर तिर्यंच नपुंसक संख्यातगुणा हैं क्योंकि वे बृहत्तम प्रतर के असंख्यातवें भागवर्ती असंख्यात श्रेणीगत प्रदेशराशि प्रमाण हैं। उनसे चउरिन्द्रिय तिर्यंच नपुंसक विशेषाधिक हैं क्योंकि वे असंख्यात योजन कोटाकोटि प्रमाण आकाश प्रदेश राशि प्रमाण घनीकृत लोक की एक प्रादेशिक श्रेणियों में जितने आकाश प्रदेश हैं उतने प्रमाण वाले हैं। उनसे तेइन्द्रिय तिर्यंच नपुंसक विशेषाधिक हैं क्योंकि वे प्रभूततर श्रेणीगत आकाश प्रदेश राशि प्रमाण हैं। उनसे बेइन्द्रिय नपुंसक विशेषाधिक है क्योंकि वे प्रभूततम श्रेणीगत आकाश प्रदेश राशि प्रमाण है। 1 उनसे तेजस्कायिक एकेन्द्रिय तिर्यंच नपुंसक असंख्यातगुणा हैं क्योंकि वे सूक्ष्म और बादर मिल कर असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण है। उनसे पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यंच नपुंसक विशेषाधिक हैं क्योंकि वे प्रभूत असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण हैं। उनसे अप्कायिक एकेन्द्रिय तिर्यंच नपुंसक विशेषाधिक हैं क्योंकि वे प्रभूततर असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण हैं। उनसे वायुकायिक एकेन्द्रिय तिर्यंच नपुंसक विशेषाधिक हैं क्योंकि वे प्रभूततम असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण हैं। उनसे वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय तिर्यंच नपुंसक अनन्तगुणा हैं क्योंकि वे अनन्त लोकाकाश प्रदेश राशि प्रमाण हैं। यह तीसरा अल्प बहुत्व हुआ । एएसि णं भंते! मणुस्स णपुंसगाणं कम्मभूमि णपुंसगाणं अकम्मभूमि णपुंसगाणं अंतरदीवगाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy