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________________ १५४ जीवाजीवाभिगम सूत्र जेसिम वड्डो पुग्गल परियट्टो, सेसओ य संसारो। ते सुक्कपक्खिया खलु अहिए पुण कण्ह पक्खीया॥ अल्प संसारी जीव थोड़े होने से शुक्लपाक्षिक जीव थोड़े हैं। कृष्ण पाक्षिक-जीव बहुत हैं.क्योंकि दीर्घ संसारी जीव अनन्तानन्त हैं। शंका - यह कैसे माना जाय कि कृष्णपाक्षिक जीव दक्षिण दिशा में प्रचुरता से पैदा होते हैं ? समाधान - उनका स्वभाव ही ऐसा होता है। कृष्णपाक्षिक प्रायः दीर्थ संसारी होते हैं और दीर्घ संसारी बहुत पाप कर्म के उदय से होते हैं। बहुत पाप के उदय वाले जीव प्राय: क्रूरकर्मा होते हैं और क्रूरकर्मा जीव तथास्वभाव से भवसिद्धिक होते हुए भी दक्षिण दिशा में उत्पन्न होते हैं। कहा भी है - पायमिह कूरकम्मा भवसिद्धिया वि दाहिणिल्लेसु। णेरड्य-तिरिय-मणूया सुराइठाणेसुगच्छन्ति॥ दक्षिण दिशा में कृष्णपाक्षिकों की प्रचुरता होने से अच्युतकल्प देवपुरुषों की अपेक्षा आरणकल्प के देवपुरुष संख्यातगुणा हैं। आरणकल्प के देवपुरुषों से प्राणत कल्प के देवपुरुष संख्यातगुणा हैं। उनसे आनत कल्प के देव पुरुष संख्यातगुणा हैं। आनतकल्प के देवपुरुषों से सहस्रार कल्प के देव पुरुष असंख्यातगुणा हैं क्योंकि वे घनीकृत लोक की एक प्रादेशिक श्रेणी के असंख्यातवें भाग में जितने आकाश प्रदेश हैं उनके तुल्य हैं। उनसे महाशुक्र कल्प के देवपुरुष असंख्यातगुणा हैं क्योंकि वे वृहत्तर श्रेणी के असंख्यातवें भागवर्ती आकाश प्रदेश राशि तुल्य है। विमानों की बहुलता के कारण यह असंख्यातपना समझना चाहिये क्योंकि सहस्रारकल्प में छह हजार विमान हैं जबकि महाशुक्र कल्प में चालीस हजार विमान हैं। नीचे नीचे के विमानों में ऊपर के विमानों की अपेक्षा अधिक देवपुरुष होते हैं। महाशुक्रकल्प के देवपुरुषों से लान्तक देवपुरुष असंख्यातगुणा हैं क्योंकि वे वृहत्तम श्रेणी के असंख्यातवें भागवर्ती आकाश प्रदेश राशि प्रमाण हैं। उनसे ब्रह्मलोक कल्प के देवपुरुष असंख्यातगुणा हैं क्योंकि वे अधिक वृहत्तम श्रेणी के असंख्यातवें भागवर्ती आकाश प्रदेश राशि प्रमाण हैं। उनसे माहेन्द्र कल्पवासी देवपुरुष असंख्यातगुणा हैं क्योंकि वे और अधिक वृहत्तमश्रेणी के असंख्यातवें भागवर्ती आकाश प्रदेशराशि प्रमाण हैं। उनसे सनत्कुमार के देवपुरुष असंख्यातगुणा हैं क्योंकि विमानों की बहुलता है। सनत्कुमार कल्प में बारह लाख विमान है और माहेन्द्र कल्प में आठ लाख विमान हैं। सनत्कुमार कल्प दक्षिण दिशा में है और माहेन्द्र कल्प उत्तरदिशा में है। दक्षिण दिशा में कृष्णपाक्षिक की प्रचुरता है अतः माहेन्द्रकल्प के देव पुरुषों से सनत्कुमार कल्पे के देवपुरुष असंख्यातगुणा हैं। सहस्रार कल्प से सनत्कुमार कल्प के देवपुरुष असंख्यातगुणा हैं। सहस्रार कल्प से सनत्कुमार कल्प तक के देव सभी अपने-अपने स्थान में घनीकृत लोक की एक श्रेणी के असंख्यातवें भाग में रहे हुए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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