SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .... . द्वितीय प्रतिपत्ति - पुरुषों का अल्पबहुत्व १५५ आकाश प्रदेशों की राशि प्रमाण हैं परन्तु श्रेणी का असंख्यातवां भाग असंख्यात रूप होने से असंख्यातगुणा कहने में कोई विरोध नहीं आता है। सनत्कुमार कल्प के देवपुरुषों से ईशान कल्प के देवपुरुष असंख्यातगुणा हैं क्योंकि वे अंगुल मात्र क्षेत्र की प्रदेश राशि के द्वितीय वर्ग मूल को तृतीय वर्गमूल से गुणा करने पर जितनी प्रदेशराशि होती है उतनी घनीकृत लोक की एक प्रदेश की श्रेणियों में जितने आकाश प्रदेश होते हैं उसका जो बत्तीसवां भाग हैं उतने हैं। ईशान कल्प के देवपुरुषों से सौधर्म कल्प के देवपुरुष संख्यातगुणा हैं क्योंकि ईशान कल्प में २८ लाख विमान हैं और सौधर्म कल्प में ३२ लाख विमान हैं। सौधर्म कल्प दक्षिण दिशा में है और ईशानकल्प उत्तरदिशा में है। दक्षिण दिशा में कृष्णपाक्षिक अधिक उत्पन्न होते हैं अतः ईशान कल्प के देवपुरुषों से सौधर्म कल्प के देवपुरुष संख्यातगुणा हैं। ... सौधर्म कल्प के देवपुरुषों से भवनवासी देवपुरुष असंख्यातगुणा हैं क्योंकि वे अंगुल मात्र क्षेत्र की प्रदेश राशि के प्रथम वर्गमूल के संख्यातवें भाग में जितनी प्रदेश राशि होती है उतनी घनीकृत लोक की एक प्रदेश वाली श्रेणियों में जितने आकाश प्रदेश हैं उनके बत्तीसवें भाग प्रमाण हैं। भवनवासी देवों . से वाणव्यंतर देव असंख्यातगुणा हैं क्योंकि वे एक प्रतर के संख्यात कोडाकोडी योजन प्रमाण एक .. 'प्रदेश वाली श्रेणी प्रमाण जितने खण्ड होते हैं उनके बत्तीसवें भाग प्रमाण है। वाणव्यंतर देवों से भी ज्योतिषी देव संख्यातगुणा हैं क्योंकि दो सौ छप्पन (२५६) अंगुल प्रमाण एक प्रदेशवाली श्रेणी जितने एक प्रतर में खण्ड होते हैं उनके बीसवें भाग प्रमाण हैं। ५.शामिल अल्ब बहुत्व - सबसे थोड़े अन्तरद्वीपज मनुष्य पुरुष हैं क्योंकि उनका क्षेत्र थोड़ा है उनसे देवकुरु उत्तरकुरु के मनुष्य पुरुष परस्पर तुल्य संख्यातगुणा हैं क्योंकि क्षेत्र बहुत है और समान है। उनसे हरिवर्ष रम्यक वर्ष के मनुष्य पुरुष संख्यात गुणा और स्वस्थान में परस्पर तुल्य हैं क्योंकि क्षेत्र अति बहुल है। उनसे हैमवत हैरण्यवत के मनुष्यपुरुष संख्यातगुणा हैं क्योंकि क्षेत्र अल्प होने पर भी स्थिति की अल्पता के कारण उनकी प्रचुरता है। स्वस्थान में परस्पर तुल्य हैं। उनसे भरत ऐरवत के कर्मभूमिज मनुष्य पुरुष संख्यातगुणा और स्वस्थान में परस्पर तुल्य है क्योंकि स्वभाव से ही मनुष्य पुरुषों की प्रचुरता है। उनसे पूर्वविदेह अपरविदेह के मनुष्य पुरुष संख्यातगुणा हैं क्योंकि क्षेत्र की बहुलता होने से स्वभाव से ही मनुष्य पुरुषों की प्रचुरता है। स्वस्थान में परस्पर तुल्य हैं। यहाँ पर पूर्व विदेह और अपरविदेह के मनुष्यों को तुल्य बताया है। वह सामान्य कथन समझना चाहिये। प्रज्ञापना सूत्र के तीसरे पद में दिशानुपात के वर्णन में पूर्वविदेह से अपरविदेह में मनुष्य विशेषाधिक बताये हैं। यहां पर उस विशेषाधिकता को गौण कर दिया गया है। पूवविदेह और अपर विदेह के मनुष्य पुरुषों से अनुत्तरौपपातिक देव पुरुष असंख्यातगुणा हैं क्योंकि वे क्षेत्र पल्योपम के असंख्यातवें भागवर्ती आकाश प्रदेश राशि प्रमाण हैं। उनसे उपरितन ग्रैवेयक देव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy