SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय प्रतिपत्ति - पुरुषों का अल्पबहुत्व १. सामान्य से तिर्यंच, मनुष्य और देव पुरुषों का अल्पबहुत्व - सबसे कम मनुष्य पुरुष, उनसे तिर्यंच पुरुष असंख्यातगुणा और उनसे देवपुरुष असंख्यातगुणा होते हैं । यह प्रथम अल्प बहुत्व है। २. तिर्यंच योनिक पुरुषों का अल्पबहुत्व - सबसे थोड़े खेचर तिर्यंच पुरुष हैं, उनसे स्थलचर तिर्यंच पुरुष संख्यातगुणा, उनसे जलचर तिर्यंच पुरुष संख्यातगुणा है। यह दूसरा अल्प बहुत्व है । ३. मनुष्य पुरुषों का अल्पबहुत्व - सबसे थोड़े अंतरद्वीपज मनुष्य है, उनसे देवकुरु और उत्तरकुरु के मनुष्य परस्पर तुल्य और संख्यातगुणा, उनसे हरिवर्ष रम्यकवर्ष के मनुष्य परस्पर तुल्य और संख्यातगुणा, उनसे हैमवत हैरणयवत् के मनुष्य परस्पर तुल्य संख्यातगुणा, उनसे भरत ऐरवत के मनुष्य परस्पर तुल्य और संख्यातगुणा, उनसे पूर्व विदेह अपरविदेह मनुष्य परस्पर तुल्य और संख्यातगुणा अधिक है। इन तीन अल्पबहुत्वों का ग्रहण यावत् पद से हुआ है । ये तीनों अल्पबहुत्व स्त्री प्रकरण के . अनुसार ही है। ४. देव पुरुषों का अल्पबहुत्व सबसे थोड़े अनुत्तरौपपातिक देवपुरुष हैं क्योंकि उनका प्रमाण क्षेत्र पल्योपम के असंख्यातवें भागवर्ती आकाशप्रदेशों की राशि तुल्य है। उनसे उपरिम ग्रैवेयक देव पुरुष संख्यातगुणा हैं क्योंकि वे वृहत्तर क्षेत्र पल्योपम के असंख्यातवें भागवर्ती आकाश प्रदेशों की राशि प्रमाण है । विमानों की अधिकता के कारण अनुत्तरविमान देवपुरुषों से उपरितन ग्रैवेयक देव पुरुष संख्यात गुणा हैं क्योंकि अनुत्तर देवों के पांच विमान हैं और उपरितन ग्रैवेयक देवों के १०० विमान हैं। प्रत्येक विमान में असंख्यातदेव हैं। जैसे-जैसे विमान नीचे हैं उनमें देवों की संख्या अधिक है। उपरितन ग्रैवेयक देवपुरुषों से मध्यम ग्रैवेयक देवपुरुष संख्यातगुणा हैं। उनसे अधस्तन ग्रैवेयक देव पुरुष संख्यातगुणा हैं उनसे अच्युत कल्प के देव संख्यातगुणा हैं, उनसे आरण कल्प के देव पुरुष संख्यातगुणा हैं। शंका - यद्यपि आरण और अच्युत कल्प दोनों समश्रेणी वाले और समान विमान संख्या वाले हैं फिर भी अच्युत कल्प की अपेक्षा आरण कल्प के देवपुरुष संख्यातगुणा कैसे कहे हैं ? समाधान - क्योंकि आरणकल्प- दक्षिण दिशा का देवलोक है और कृष्णपाक्षिक जीव तथाविध स्वभाव से दक्षिण दिशा में अधिकता से उत्पन्न होते हैं, इसलिए अच्युत कल्प के देवपुरुषों की अपेक्षा आरण कल्प के देवपुरुष अधिक कहे गये हैं । १५३ प्रश्न- कृष्णपाक्षिक जीव किसे कहते हैं ? उत्तर - जीव दो प्रकार के कहे गये हैं- १. कृष्णपाक्षिक और २. शुक्लपाक्षिक। जिन जीवों का अर्द्ध पुद्गल परावर्त्त काल से लेकर अन्तर्मुहूर्त्त तक का संसार शेष रहा है वे शुक्ल पाक्षिक कहलाते हैं इसलिए विपरीत जो जीव दीर्घ संसारी हैं वे कृष्णपाक्षिक कहलाते हैं । कहा भी है - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy