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________________ द्वितीय प्रतिपत्ति - तीन प्रकार के संसारी जीव _ १११ भावार्थ - स्त्रियाँ कितने प्रकार की कही गई है? स्त्रियाँ तीन प्रकार की कही गई है। वे इस प्रकार हैं - १. तिर्यंचयोनिक स्त्रियां २. मनुष्य स्त्रियां और ३. देव स्त्रियां। तिर्यंचयोनिक स्त्रियाँ कितने प्रकार की कही गई हैं? तिर्यंचयोनिक स्त्रियाँ तीन प्रकार की कही गई हैं, वे इस प्रकार हैं - १. जलचरी २. स्थलचरी और ३. खेचरी। जलचर.स्त्रियाँ कितने प्रकार की कही गई हैं.? जलचर स्त्रियाँ पांच प्रकार की कही गई हैं, वे इस प्रकार हैं - मत्स्यी (मछली) यावत् सुंसमारी। स्थलचर स्त्रियाँ कितने प्रकार की कही गई है? स्थलचर स्त्रियाँ दो प्रकार की कही गई हैं। यथा - चतुष्पदी और परिसपी। . चतुष्पदी स्त्रियां कितने प्रकार की कही गई हैं ? चतुष्पदी स्त्रियां चार प्रकार की कही गई हैं। वे इस प्रकार हैं - एक खुरवाली यावत् सनखपद वाली स्त्रियां। परिसी स्त्रियां कितने प्रकार की कही गई हैं ? परिसी स्त्रियां दो प्रकार की कही गई हैं। वे इस प्रकार हैं - उरपरिसर्पिणी और भुजपरिसर्पिणी। उरपरिसर्पिणी कितने प्रकार की कही गई हैं ? उरपरिसर्पिणी तीन प्रकार की कही गई हैं वे इस प्रकार हैं - अहि स्त्री, अजगर स्त्री (अजगरी) और महोरग स्त्री (महोरगी)। इस प्रकार उरपरिसर्प स्त्रियों का निरूपण हुआ। भुजपरिसर्पिणी कितने प्रकार की कही गई हैं? भुजपरिसर्पिणी अनेक प्रकार की कही गई हैं। वे इस प्रकार हैं - गोधिका, नकुली, सेधा, सेला, सरटी (गिरगिट स्त्री) शशकी (छिपकली) खारा, पंचलौकिक, चतुष्पदिका, मूषिका, मुंगुसिका (गिलहरी), घरोलिया, गोल्हिका, योधिका, वीरचिरालिका। यह भुजपरिसी स्त्रियों का कथन हुआ। खेचरी (खेचर स्त्रियाँ) कितने प्रकार की कही गई है? ... खेचर स्त्रियाँ चार प्रकार की कही गई हैं। वे इस प्रकार हैं - चर्म पक्षिणी यावत् विततपक्षिणी। इस प्रकार खेचर स्त्रियों का वर्णन हुआ। यह तिर्यंचस्त्रियों का कथन हुआ। . विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में तिर्यंचस्त्रियों का वर्णन किया गया है। तिर्यंचस्त्रियां तीन प्रकार की कही गई है - १. जलचरी - जो जल में चलती है या जल में होती है वे जलचरी हैं। २. स्थलचरी - जो स्थल में चलती है या स्थल में होती है वे स्थलचरी है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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