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________________ तृतीय वर्ग - प्रथम अध्ययन - भविष्य पृच्छा ५६ धन्य अनगार को दिवंगत हुआ जानकर स्थविरों ने परिनिर्वाण प्रत्ययिक कायोत्सर्ग किया। अर्थात “परिनिर्वाणम्-मरणं यत्र, यच्छरीरस्य परिष्ठापनं तदपि परिनिर्वाणमेव तदेव प्रत्ययोहेतुर्यस्य स परिनिर्वाणप्रत्ययः' अर्थात् मृत्यु के अनन्तर जो ध्यान किया जाता है उसको परिनिर्वाण प्रत्ययिक कायोत्सर्ग कहते हैं। कायोत्सर्ग करने के बाद समीपस्थ स्थविरों ने धन्य अनगार के वस्त्र, पात्र आदि उपकरण उठाये, विपुलगिरि पर्वत से नीचे उतरे और भगवान् के समीप आकर इस प्रकार बोले - 'हे भगवन्! ये धन्य अनगार के वस्त्र आदि उपकरण हैं।' भविष्य पृच्छा भंते! त्ति भगवं गोयमे तहेव पुच्छइ जहा खंदयस्स, भगवं वागरेइ, जाव सव्वट्ठसिद्धे विमाणे उववण्णे। भावार्थ - "हे भगवन्!" भगवान् गौतम ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को संबोधन कर भगवती सूत्र में वर्णित स्कंदक मुनि के वृत्तांत के अनुसार पूछा तब भगवान् ने गौतम स्वामी से कहा कि यावत् सर्वार्थसिद्ध विमान में उत्पन्न हुए। धण्णस्स णं भंते! देवस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। भावार्थ - गौतमस्वामी ने पूछा - हे भगवन्! धन्य देव की कितने काल की स्थिति कही हे गौतम! तैतीस सागरोपम की स्थिति कही गई है। से णं भंते! ताओ देवलोगाओ कहिं गच्छिहिइ? कहिं उववजिहिइ? गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ, बुज्झिहिइ, मुच्चिहिइ, परिणिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं करेहिए। . कठिन शब्दार्थ - कहिं - कहां, गच्छिहिइ - जायगा, उववजिहिइ - उत्पन्न होगा, महाविदेहेवासे - महाविदेह क्षेत्र में, सिज्झिहिइ - सिद्ध होगा, बुज्झिहिइ - बुद्ध होगा, मुच्चिहिइ - मुक्त होगा, परिणिव्वाहिइ - निर्वाण प्राप्त करेगा, सव्वदुक्खाणं अंतं - सभी दुःखों का अन्त, करेहिइ - करेगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004192
Book TitleAnuttaropapatikdasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages86
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuttaropapatikdasha
File Size12 MB
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