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________________ अनुत्तरोपपातिक दशा सूत्र भावार्थ - हे भगवन्! वह धन्य देव देवलोक से चव कर कहां जायगा ? और कहां उत्पन्न होगा ? हे गौतम! वह महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा और दीक्षा ग्रहण कर सिद्ध होगा, बुद्ध होगा, सभी कर्मों से मुक्त होगा, निर्वाण प्राप्त करेगा और समस्त दुःखों का अंत करेगा । विवेचन गौतमस्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर प्रश्न किया - हे भगवन्! आपका विनयी शिष्य धन्य अनगार समाधि-मरण प्राप्त कर कहां गया, कहां उत्पन्न हुआ है, वहां कितने काल तक उसकी स्थिति होगी और तदनन्तर वह कहां उत्पन्न होगा ? ६० - इसके उत्तर में भगवान् ने फरमाया हे गौतम! मेरा विनयी शिष्य धन्य अनगार समाधि मरण प्राप्त कर सर्वार्थसिद्ध विमान में उत्पन्न हुआ है, वहां उसकी तेतीस सागरोपम स्थिति है और वहां से च्युत होकर वह महाविदेह क्षेत्र में मोक्ष प्राप्त करेगा अर्थात् सिद्ध बुद्ध और मुक्त होकर परिनिर्वाण पद प्राप्त कर सब दुःखों का अन्त कर देगा । यह सुन कर गौतमस्वामी अत्यंत प्रसन्न हुए । तं एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते । ॥ पढमं अज्झयणं समत्तं ॥ भावार्थ इस प्रकार हे जंबू ! श्रमण भगवान् यावत् मोक्ष प्राप्त महावीर स्वामी ने प्रथम अध्ययन का यह अर्थ कहा है। विवेचन प्रथम अध्ययन का उपसंहार करते हुए श्री सुधर्मास्वामी श्री जंबू स्वामी से कहते हैं कि हे जम्बू! जिस प्रकार मैने उक्त अध्ययन का भाव (अर्थ) श्रवण किया है उसी प्रकार तुम्हें कहा है अर्थात् मेरा यह कथन केवल भगवान् के कथन का अनुवाद मात्र है। इसमें . मेरी अपनी बुद्धि से कुछ भी नहीं कहा है । ॥ इति तृतीय वर्ग का प्रथम अध्ययन समाप्त ॥ Jain Education International उपसंहार - - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004192
Book TitleAnuttaropapatikdasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages86
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuttaropapatikdasha
File Size12 MB
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